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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व
४१३ ५.२.१११ ढोलणी दहिया नइ महिया रे, बांभणी वीरला रे रायजादी रे।
- वल्कलचीरी-चौपाई (५) ५.२.११२ तपोधन रूड़ा रे।
- श्री प्रसन्नचन्द राजर्षि गीतम् ५.२.११३ तिण अवसर एक भील आवि उभऊ रह्यउ।
- नलदवदन्ती-रास (३.५) ५.२.११४ तिमरी पासइ वडलुं गान।
- चार प्रत्येकबुद्ध रास(३.१०); सीताराम-चौपाई (२.२); सिंहलसुत-चौपाई (१०); धनदत्त-चौपाई (२);
वस्तुपाल-तेजपाल रास (२) ५.२.११५ तिल्ली रा गीतनी।
- सीताराम-चौपाई (९.१) ५.२.११६ तीर्थङ्कर रे चउवीस मइ संस्तव्या रे।
- वल्कलचीरी-रास (१०) ५.२.११७ तुंगिया गिरि सिखर सोहई। - चम्पकवेष्ठि-चौपाई (९.१); साधु-वन्दना-रास (११); क्षुल्लक ऋषि रास (२); बारह भावना गीतम्; नववाड़शील गीतम्; शांब-प्रद्युम्न चौपाई (२१);
चार प्रत्येकबुद्ध रास (३.१) ५.२.११८ ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं।
- चम्पकश्रेष्ठि चौपाई (१.५), आलोयणा-छत्तीसी ५.२.११९ तोरा नउं रंज्यो रे लाखोरण जाती, तोरा कीजइ म्हाकां लाल। दारु पिअइ जी, पडवइ पधारउ म्हाका लाल लसकर लेज्यो जी।
- सीताराम-चौपाई (५.३) ५.२.१२० तोरे कोडले वेदरमी परणुं कुअरी रे।
- द्रौपदी-चौपाई (२.१) ५.२.१२१ त्राटक वेलि नी।
-- सीताराम-चौपाई (१.७) ५.२.१२२ थांकी अवलु आवइ जी।
- सीताराम-चौपाई (२.७) ५.२.१२३ दिल्ली के दरबार मई लख आवइ लख जाय। एक न आवइ नवरंग खान जाकी पधरी ढलि ढलि जावइ बे नवरंग वइरागी लाल।
- सीताराम-चौपाई (९.४)
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