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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ३९९ में गुरु- -वर्णन करते हुए उन्होंने शास्त्रीय संगीत की छः राग और छतीस रागिनियों का नामोल्लेख किया है। 'चन्द्रप्रभ जिन स्तवनम्' में उन्होंने भगवान चन्द्रप्रभ की स्तुति करते हुए द्वयर्थक रूपों में चवालीस रागों के नाम प्रयुक्त किये हैं। एक ऐसा भी स्तवन प्राप्त होता है, जो सतरह रागों में गुम्फित है । उस स्तवन का नाम है, 'श्री जैसलमेर मण्डन पार्श्वजिन स्तवनम् ।' कवि ने अपने साहित्य में अनेक रागों का प्रयोग किया है, जिनमें आशावरी, केदार, गौड़ी, धन्याश्री, सारंग, मल्हार आदि प्रमुख हैं। उदाहरणार्थ प्रस्तुत है, केदार राग में निर्मित एक गीत प्रभु तेरे गुण अनन्त अपार । सहस रसना करत सुरगुरु, कहत न आवे पार ॥ कोण अम्बर गिणै तारा, मेरु गिरी को भार । चरम सागर लहरि माला, करत कोण विचार ॥ भगति गुण लवलेश भाखुं, सुविध जिन सुखकार । समयसुन्दर कहइ हमकुं, स्वामी तुम आधार ॥ -शैलियों का रस समयसुन्दर के इन गेय पदों में सूरदास तथा तुलसीदास की पद-: प्राप्त किया जा सकता है। अधिक विस्तार में न जाते हुए यहाँ केवल उनके काव्य में प्रयुक्त रागों का नामोल्लेख किया जा रहा है। साथ ही जिन रचनाओं में वे रागें प्रयुक्त हुई हैं, उनका भी निर्देश किया जा रहा है - ww -- ५.१.१ ५.१.२ ५.१.३ अडाण कनउ - ऐरवत क्षेत्र चतुर्विंशति जिन गीतम् (२०) । अधरस- अग्गपुत्त जिन गीतम्; भावना गीतम् । आसावरी - सीताराम - चौपाई (१.७); नलदवदंती - - रास (३.१ : ६.३ ); सिहलसुत्त - चौपाई (४); शत्रुञ्जय रास ( २ ) ; वही (४); शांब - प्रद्युम्न चौपाई (१६) नेमिनाथ गीतम्; अंत समये जीव-निर्जरा गीतम्; अठारह पाप स्थानक परिहार गीतम्; चौरासी लक्ष जीवयोनि-क्षामणा गीतम्; मनोरथ गीतम्; अध्यात्म सज्झाय; साधुगुण गीतम्; स्वार्थ गीतम्; मरण-भय-निवारण गीतम्; घड़ी लाखीणी गीतम्; जीव प्रतिबोध गीतम्; श्री जिनराजसूरि गीतानि (२); श्री जिनचन्द्रसूरिस्तवन, भट्टारकत्रय गीतम्; गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवनम्; श्री जैसलमेर मंडन पार्श्वजिन स्तवनम्; श्री नेमिनाथ गूढा गीतम्; श्री नेमिनाथ गीतम्; विहरमान - वीसी - स्तवना: (३); चौबीसी (२१,१५ ) सावरी सिंधुड़ो - सीताराम - चौपाई (२.३); चार प्रत्येकबुद्ध रास (१.८); शत्रुञ्जय रास (४); चार शरणा गीतम्; शुद्ध श्रावक दुष्कर मिलन गीतम् ; १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, चौवीसी, सुविधि जिन स्तवन (१-३) ५.१.४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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