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________________ ३९८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ४.३३ सोरठा सोरठे के विषम चरणों में ११-११ और सम में १३-१३ मात्राएँ होती हैं । दोहे का उल्टा सोरठा है। अतः इसमें तुक-योजना विषम चरणों में होती है। यथा - विषम ११ सम १३ ।। 55 55।। ।।555 5।।। अति मीठा आहार, सखरा देज्यो साधनइ। सुख लहिस्युं श्रीकार, फल बीजां सरिखा फलइ॥ सोरठा के सम चरण बेतुके भी रहते हैं। यथा - क्रीड़ा कारण कुमार, इण अवसर वनि आवियउ। पूठी बहु परिवार, खेलण लागण खांति सुं॥२ ४.३४ मिश्र सम और अर्द्धसम के मेल से गठित छन्दों को मिश्र छन्द कहते हैं। जैसे - श्री गौतम गुरु पय नमी, गाउ श्री गच्छराज । श्री जिनसिंघसूरीसरु, पूरवइ वंछित काज । पूरवइ वंछित काज सहगुरु, सोभागी गुण सोह ए। मुनिराय मोहन वेलिनी परि, भविक जन-जन सोह ए॥ चारित्र पात्र कठोर किरिया, धरम कारिज उद्यमी। गुरुराज ना गुण गाइस्यु जी, श्री गौतम गुरु पय नमी ॥३ यहाँ प्रथम दो पंक्तियाँ दोहे की और शेष चार हरिगीतिका की हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि महाकवि समयसुन्दर ने काव्य-निर्माण के लिए विभिन्न छन्दों को अपनाया है। संख्या विशेष की दृष्टि से कवि ने सर्वाधिक रूप से अनुष्टुप, दोहा आदि छन्दों का प्रयोग किया है। ५. रागें तथा देशी ५.१ राग ___'राग' भारतीय संगीत का वैशिष्टय है। राग वह रंजक धुन है, जिसमें स्वर संवाद-सम्बन्ध से परस्पर सम्बद्ध रहते हैं। श्रोताओं को रंजित करने में राग प्रमुख है। कवि समयसुन्दर ने अपनी रचनाओं को लोक-रञ्जक बनाने के लिए विविध रागों में रचना की। लोक-गीतों की अपेक्षा शास्त्रीय रागों में रचना करना कुछ कठिन सा होता है, लेकिन समयसुन्दर को सभी शास्त्रीय रागों का अपेक्षित ज्ञान था। 'जिनचन्द्रसूरि गीतम्' १. प्रियमेलक सिंहलसुत-चौपाई (१.४) २. प्रियमेलक सिंहलसुत-चौपाई, (ढाल २ से पूर्व सोरठा, १) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, जिनसिंहसूरिगीतानि (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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