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________________ २७६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कलाभिः कलाभिर्युतात्मीय देहम्। . मणुण्णं कलाकेलि-रूवाणुगारं, स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणिसारम् ॥ १.३ मरु-गूर्जर भाषा (प्राचीन हिन्दी) हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि भाषाएँ प्राकृत अपभ्रंश से विकसित हुईं। महोपाध्याय समयसुन्दर की भाषा भी प्राकृत अपभ्रंश से ही विकसित है। इस भाषा से हमारा अभिप्राय उस भाषा से है, जो समयसुन्दर के समय जनसाधारण में व्यवहत होती थी। समयसुन्दर की भाषा का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उनकी यह भाषा शौरसेनी प्राकृत>अपभ्रंश से विकसित है। शौरसेनी प्राकृत>अपभ्रंश से हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी आदि भाषाओं का जन्म हुआ है। समयसुन्दर की भाषा इनमें से कौन-सी थी, इसके लिए विद्वानों में मतभेद हैं। राजस्थान के विद्वान् समयसुन्दर की भाषा को राजस्थानी भाषा मानते हैं और गुजरात के विद्वान् उनकी भाषा को गुजराती बताते हैं। अगरचन्द नाहटा, भँवरलाल नाहटा, डॉ० सत्यनारायण स्वामी के मतानुसार समयसुन्दर का भाषा-साहित्य राजस्थानी में निबद्ध है, जबकि मोहनलाल दलीचन्द देसाई, डॉ. रमणलाल चि० शाह" आदि ने उनके भाषा-साहित्य को गुजराती में गुम्फित बताया है। यद्यपि दोनों पक्षीय विद्वान् अपने-अपने भाषा-क्षेत्र के मूर्धन्य विद्वान् हैं, लेकिन किसी ने भी उनकी भाषा को राजस्थानी अथवा गुजराती बताने का कारण नहीं बताया है। वास्तविकता तो यह है कि जिस मूल भाषा से राजस्थानी और गुजराती दोनों का विकास हुआ, उसमें ऐसी कोई विभाजक रेखा अङ्कित कर पाना संभव नहीं है। समयसुन्दर का जन्म-स्थान सांचौर है। यह स्थान राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित है। सीमावर्ती क्षेत्र होने से वहाँ की भाषा न तो विशुद्ध राजस्थानी है और न ही विशुद्ध गुजराती। यद्यपि सांचौर-क्षेत्र राजस्थान प्रान्तान्तर्गत है, किन्तु वहाँ की भाषा गुजराती से पूर्णतः प्रभावित है। वर्तमान में भी सांचौर एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में जो भाषा व्यवहत होती है, वह राजस्थानी और गुजराती का मिश्रित रूप है। यों भी दोनों भाषाएँ एक-दूसरे से प्रभावित हैं और उनमें साम्यता के विविध आयाम देखे जा सकते हैं। समयसुन्दर के भाषा-साहित्य में भी दोनों भाषाओं का सम्मिश्रित रूप उपलब्ध है। ऐसे १. वही, पार्श्वनाथलघुस्तवनम् (१) २. द्रष्टव्य - सीताराम चौपाई, भूमिक, पृष्ठ १३-३१ ३. द्रष्टव्य - महाकवि समयसुन्दर और उनकी राजस्थानी रचनाएँ, पृष्ठ ७० ४. द्रष्टव्य - आनन्द काव्य महोदधि मौक्तिक ७ मु. कविवर समयसुन्दर, पृष्ठ ३४ ५. द्रष्टव्य -- मृगावती-चरित्र-चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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