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________________ २३६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६.३.२४ धन्ना अनगार गीतम् राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर से पूछा कि आपके १४ हजार शिष्यों में सर्वाधिक तपस्वी कौन है? महावीर ने कहा – धन्ना अनगार है। वह काकन्दी नगर की भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र है। उसने अपार वैभव को छोड़कर बड़े वैराग्य से दीक्षा ग्रहण की है। उत्कट तप करने से उसका शरीर सूखकर अस्थि-पिंजर-सा हो गया है। यही प्रस्तुत रचना का सार है। इसमें ९ कड़ियाँ हैं। इसका भी निर्माण-स्थल तथा समय, दोनों अज्ञात हैं। ६.३.२५ इलापुत्र गीतम् प्रस्तुत कृति मात्र १८ कड़ियों में निबद्ध है। इसका कथानक स्वत: रोचक है। इलावर्धन नगर में धनदत्त सेठ रहता था। उसके इलापुत्र नामक आत्मज था। इलापुत्र एक बार नाटक देखते हुए सुरूपा नामक नट-कन्या पर मोहित हो गया। उसने उसके साथ विवाह-संस्कार करना चाहा। नट ने अपना प्रस्ताव उपस्थित किया, 'हमारे संग रहने वाले निपुण नट के साथ ही नट-कन्या का विवाह होगा।' कामासक्त इलापुत्र ने इसे स्वीकार कर लिया। धन-वैभव ठुकराकर वह नट-विद्या का प्रदर्शन करने लगा। एक बार नट-विद्या में निष्णात इलापुत्र जब एक नगर में राजा और जनसमूह के समक्ष अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था, तब राजा भी सुरूपा के रूप-लावण्य को देख उसे पाने की योजना बनाने लगा। इलापुत्र के जीवित रहते यह कार्य हो पाना दुष्कर था। एक ओर राजा इलापुत्र के जीवन को समाप्त करने की सोचने लगा, तो दूसरी ओर इलापुत्र राजा से धनप्राप्ति की। राजा ने दो-तीन बार इलापुत्र से कला का प्रदर्शन करवाया। राजा ने जब चौथी बार बांस पर चढ़कर कला-प्रदर्शन हेतु कहा, तो वह अन्यमनस्कता के साथ बाँस पर चढ़ा। उसी समय उसकी दृष्टि एक गृही के यहाँ भिक्षा के लिए आए हुए एक मुनि पर पड़ी। यद्यपि गृह-स्वामिनी सुरूपा से ज्यादा लावण्यवती थी, किन्तु मुनि ने उसकी ओर निगाह उठाकर नहीं देखा। भिक्षा ग्रहण की और चल दिये। यकायक इलापुत्र की विचार-दशा बदली। वैराग्य-भावना दृढीभूत हुई, सम्यक् दृष्टि को प्राप्त कर कषायों का उच्छेद किया और उसी बांस पर कैवल्य को प्राप्त कर लिया। अन्त में उसने सभी को उपदेश दिया। राजा और नटी, दोनों ही प्रतिबोध को प्राप्त हुए। कवि ने भावना या भावशुद्धि के महत्त्व को बतलाने के लिए यह कथा सुन्दर रूप से अंकित की है। प्रस्तुत कृति की रचना कवि समयसुन्दर ने अहमदाबाद जनपद के ईदलपुर में लिखी है। इसका रचना-काल निश्चित नहीं हो पाया है। ६.३.२६ धन्ना-शालिभद्र सज्झाय यह ३६ कड़ियों में लिखी गई छोटी-सी रचना है। कवि ने इसके लेखन-काल और स्थल का उल्लेख नहीं किया है। विवेच्य-रचना का वर्ण्य-विषय इस प्रकार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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