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________________ २३५ समयसुन्दर की रचनाएँ उल्लेख नहीं किया है। ६.३.१९ श्री दुमुह प्रत्येकबुद्ध गीतम् प्रस्तुत गीत ७ गाथाओं में निबद्ध है। गीत का रचना-समय अज्ञात है। इसमें द्विमुख नामक 'द्वितीय प्रत्येकबुद्ध' का संक्षिप्त जीवन चित्रित है, जिसका विवेचन हमने 'चार प्रत्येकबुद्ध रास' के परिचयान्तर्गत कर दिया है। ६.३.२० श्री अरहन्त्रक साधु गीतम् इस गीत का वर्ण्यविषय पथभ्रष्ट हुए अरहन्नक मुनि द्वारा संयम अंगीकार कर मोक्ष-गमन करने से संबंधित है। गीत में ७ गाथाएँ हैं। इसका रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.३.२१ श्री अरहन्नक गीतम् प्रस्तुत गीत का रचना-काल विदित नहीं हो पाया है। गीत ९ गाथाओं में आबद्ध है। गीत में वर्णित विषय-निम्नांकित है - मुनि अरहन्नक ने सूर्य की ग्रीष्म-किरणों से व्याकुल होकर और एक तरुणी के निवेदन पर अपना मुनि-वेश त्याग दिया। उनकी माता साध्वी भद्रा अरहन्नक के वियोग में पागल हो गई। कालान्तर, अरहन्नक अपनी माता की दीन अवस्था एवं माता का पुत्र के प्रति प्रेम देखकर पुनः विरक्ति को प्राप्त हुए। उन्होंने वापस प्रव्रज्या ग्रहण कर ली और उत्कृष्ट साधना के द्वारा मोक्षपद प्राप्त किया। ६.३.२२ श्री अरहन्नक मुनि गीतम् 'श्री अरहन्त्रक मुनि गीतम्' में अरहन्नक मुनि के पूर्व में सन्मार्गगामी, फिर उन्मार्गगामी और पुनः सन्मार्गगामी जीवन-वृत्त को निबद्ध किया गया है। रचना में ८ कड़ियाँ हैं। इसका प्रणयन-काल अज्ञात है। ६.३.२३ अनाथी मुनि गीतम् __ प्रस्तुत रचना का रचना-स्थल एवं रचना-समय - दोनों ही अज्ञात हैं। प्रस्तुत कृति के प्रणयन का उद्देश्य अनाथ और सनाथ की परिभाषा व्यक्त करना ही परिलक्षित होता है। कृति-सार इस प्रकार है - मगघ-सम्राट श्रेणिक ने मुनि अनाथी से मुनि बनने का कारण पूछा। मुनि ने कहा – मैं अनाथ हैं, इसलिए मैं साधु बना हूँ। राजा ने कहा - मैं तेरा नाथ बनता हूँ। मुनि ने कहा – राजन्! तू भी अनाथ है। राजा इस उत्तर से चकित हुआ। मुनि ने अपने वैभव-सम्पन्न गृहस्थ-जीवन का परिचय दिया और कहा कि ऐश्वर्य एवं परिवार होने मात्र से कोई सनाथ नहीं होता। बाहर में सब कुछ पाकर भी व्यक्ति अनाथ ही रह जाता है, यदि वह अपनी विषय-वासनाओं का नियन्ता नहीं है। विवेच्य रचना में ९ गाथाएँ हैं। इसकी कथा 'उत्तराध्ययन सूत्र' में आई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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