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________________ २२५ समयसुन्दर की रचनाएँ हुए नाग-युगल को बचाया। उन्होंने उस नाग-युगल को नमस्कार-मन्त्र' सुनाया, जिससे वह मरकर धरणेन्द्र एवं पद्यावती नामक देव-देवी हुए। पौष कृष्णा एकादशी को पार्श्वकुमार ने दीक्षा अङ्गीकार की और साधना करने लगे। पूर्वभव के वैरवश कमठ ने अति धारासार जलवृष्टि आदि से उन पर उपसर्ग किये, परन्तु धरणेन्द्र देव ने इस दुष्कृत्य के लिए कमठ को धिक्कारा और उपसर्ग शान्त किये। चैत्र कृष्णा चतुर्थी को उन्होंने कैवल्य प्राप्त किया और तत्पश्चपात् सम्पूर्ण आर्यक्षेत्र में धर्मनीति के बीज-वपन किये। श्रावण शुक्ला अष्टमी को उन्होंने सिद्धत्व प्राप्त किया। इस प्रकार कवि ने पार्श्वप्रभु के पंचकल्याणक का वर्णन करते हुए अन्त में उनकी भावभीनी स्तुति की है। ६.२.३.२४ श्री फलवर्द्धि पार्श्वनाथ स्तवन प्रस्तुत स्तवन कुल १० पद्यों में है। ९ पद्यों में स्तुति है और अन्तिम पद्य में 'कलश' किया गया है। इस स्तवन में फलवर्द्धि-पार्श्वनाथ-तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए कवि ने उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। गीत में यह भी निर्दिष्ट है कि फलवर्द्धि पार्श्व की प्रतिमा श्यामवर्णी, सप्तफणवाली, मनोहारी और चमत्कारी है। इस तीर्थ में पौष कृष्णा दशमी को भारी मेला लगता है। कवि ने भी पौष कृष्णा दशमी को ही इस तीर्थ की यात्रा की थी, लेकिन उन्होंने यह तीर्थयात्रा किस वर्ष में की थी, इसकी सूचना गीत में उपलब्ध नहीं है। ६.२.३.२५ श्री लौद्रवपुर सहस्रफणा पार्श्वनाथ स्तवनम् __ प्रस्तुत स्तवन में लौद्रवपुर पार्श्वनाथ की स्तुति एवं वन्दना की गई है। गीत में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि जैसलमेर के सीहमल साह ने लौद्रवपुर तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया था। तीर्थ के मूलनायक पार्श्वनाथ की प्रतिमा सहस्रफणों से सुशोभित थी। कवि ने वि० सं० १६८१ की कार्तिक पूर्णिमा को इस तीर्थ की यात्रा की थी। गीत ९ पद्यों में हैं। ६.२.३.२६ श्री स्तम्भन पार्श्वनाथ स्तवनम् इस गीत में स्तम्भन पार्श्वनाथ की भावभीनी स्तुति की गई है। कवि ने लिखा है कि अभयदेवसूरि ने सेढिका नदी के तट पर इस प्रतिमा को प्रकट कर यहाँ तीर्थ स्थापित किया था। गीत में ७ पद्य हैं। रचना-काल अनुल्लिखित है। ६.२.३.२७ श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन का रचना-स्थल मेवापुर है, किन्तु रचना-काल अज्ञात है। स्तवन ८ पद्यों में निबद्ध है। इसमें कवि ने नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम की महिमा प्रदर्शित करते हुए उनके नाम का जाप करने की प्रेरणा दी है। कवि ने इस नाम को महाचमत्कारी बताया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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