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________________ २२४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व भूमि पर तीर्थनायक नेमिनाथ के दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण - ये कल्याणकत्रय हुए थे। संघपति भरतेसर ने इस तीर्थ पर सर्वप्रथम जिन-प्रासाद निर्मित करवाया था। गीत ८ पद्यों में है। इसका रचना-काल अज्ञात है। ६.२.३.२१ श्री नारंगा पार्श्वजिन स्तवनम् प्रस्तुत स्तवन में ९ गाथाएँ हैं । इसका रचना-काल कवि ने नहीं दिया है। श्री नारङ्गा तीर्थ पाटण में है। श्रवण-भूषण' ग्रन्थ के अनुसार कवि वि० सं० १६५९ में पाटण गए थे। संभवतः इसी वर्ष उन्होंने इस स्तवन की रचना की होगी। इस स्तवन में पार्श्वजिन के प्रभाव का वर्णन कर उनके चरणों में कवि ने आत्म-समर्पण किया है। ६.२.३.२२ श्री नारंगा पार्श्वनाथ स्तवनम् इस रचना में नारङ्गा पार्श्वनाथ के नामस्मरण के महत्त्व पर प्रकार डाला गया है। इसके स्मरण से शान्ति, पुष्टि और तुष्टि मिलती है। यह नाम अचिंत्य महिमा से पूरित है। गीत ९ गाथाओं में गुम्फित है। इसका भी रचना-काल सं० १६५९ होना चाहिए। इसका स्पष्टीकरण हम 'श्री तारङ्गा पार्श्वजिन स्तवनम्' में कर आए हैं। ६.२.३.२३ सप्तदश रागगर्भित श्री जैसलमेरमण्डन पार्श्वजिन स्तवनम् प्रस्तुत रचना का रचना-स्थल जैसलमेर है। रचना-समय निर्दिष्ट नहीं है। 'वल्कलचीरी चौपाई' से अवगत होता है कि कवि ने वि० सं० १६८१ में जैसलमेर में अपना वर्षावास पूर्ण किया। अत: यह रचना भी सम्भवतः उसी वर्षावास में निबद्ध हुई होगी। - इस रचना में ४७ पद्य हैं, जो १७ रागों में निबद्ध हैं। रचना की यह विशेषता है कि जिस 'राग' में जो राग प्रयुक्त हुई है, उसे प्रत्येक 'राग' (गीत) की अन्तिम पंक्ति में भी दिया गया है। रचना के निर्माण का उद्देश्य प्रभु पार्श्वनाथ के पंचकल्याणक का कीर्तन करना है। रचना के प्रारम्भ में रचना की भूमिका दी गई है, जिसमें रचना के प्रणयन का उद्देश्य बताया है और लिखा है कि जिनेश्वर के गुणों की स्तुति करने से सम्यक्त्व और तीर्थङ्कर-गोत्र की प्राप्ति होती है। रचना की विषयवस्तु इस प्रकार है - वाराणसी में अश्वसेन राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम वामा था। चैत्रकृष्ण चतुर्थी को दसवें देवलोक से एक देव 'च्यव' कर वामादेवी की कुक्षि में अवतरित हुआ। वामा ने रात्रि में चौदह शुभ स्वप्नों के दर्शन किये। पौष कृष्णा दशमी को वामा ने एक नीलवर्णी बालक को जन्म दिया। बालक का जन्मोत्सव देवताओं तक ने भी सानन्द मनाया। बालक का नामकरण 'पार्श्वकुमार' किया गया। पार्श्व प्रज्ञावान् एवं प्रवीण थे। उस समय तापस कमठ पंचाग्नि की साधना करने के लिए अपने चारों ओर लकड़ियाँ जलाकर कठिन तप कर रहा था। पार्श्व उनके पास गए और लकड़ियों में जलते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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