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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १२१ कन्या है, जिससे अरुण रूप बालक झटके से उस गेंद को पश्चिम दिया रूप कन्या की ओर उछाल रहा है। प्रस्तुत अष्टक का रचना-काल अनिर्दिष्ट है। अष्टक 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में प्रकाशित है। १.२३ समस्याष्टकम् विवेच्य रचना में कवि ने 'शतचन्द्रनभस्तलम्' - इस समस्या की विविध उपमाओं और कल्पनाओं द्वारा पूर्ति की है। यद्यपि अष्टक नाम से यह स्पष्ट होता है कि इसमें आठ पद्य रहे होंगे, किन्तु मुद्रित प्रतियों में पद्यों की संख्या ९ है और अन्तिम १०वाँ पद्य उपसंहार रूप है। स्वयं कवि लिखित प्रति में इसी समस्या की पूर्ति पर ६ पद्य और थे, किन्तु अब उनमें से ३ पद्य प्राप्त होते हैं। प्रस्तुत रचना का रचना-काल अज्ञात है। यह रचना समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि में संकलित है। उपर्यक्त संस्कृत रचनाओं के अतिरिक्त फुटकर संस्कृत-साहित्य भी प्रचुर परिमाण में उपलब्ध होता है। यह साहित्य मुख्यतः तीर्थंकरों, गुरुओं आदि की स्तुति से सम्बन्धित है। ऐसे संस्कृत-साहित्य का परिचय हम 'प्रकीर्णक-रचनाएँ' शीर्षक के अन्तर्गत आगे प्रस्तुत करेंगे। २. संस्कृत-टीकाएँ __ मूल ग्रन्थ के रहस्योद्घाटन के लिए उस पर टीकात्मक या व्याख्यात्मक साहित्य का निर्माण करना भारतीय ग्रन्थकारों की बहुत प्राचीन परम्परा है। इस प्रकार के साहित्य से दो प्रयोजन सिद्ध होते हैं। व्याख्याकार को अपनी लेखनी से ग्रन्थकार के अभीष्ट अर्थ का विश्लेषण करने में असीम आत्मोल्लास होता है तथा कहीं-कहीं उसे अपनी मान्यता प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलता है। दूसरी ओर पाठक को ग्रन्थ के गूढार्थ तक पहुँचने के लिए अनावश्यक श्रम नहीं करना पड़ता। इस प्रकार व्याख्याकार का परिश्रम स्व-पर-उभय के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। व्याख्याकार की आत्मतुष्टि के साथ ही साथ जिज्ञासुओं की तृष्णा भी शान्त होती है। इसी पवित्र भावना से भारतीय व्याख्या-ग्रंथों का निर्माण हुआ है। जैन व्याख्याकारों के हृदय भी इसी भावना से भावित रहे हैं। महोपाध्याय समयसुन्दर का व्याख्यात्मक साहित्य-जगत् में सम्मान्य स्थान है। उनकी व्याख्यापरक प्रतिभा विलक्षण थी। उनका व्याख्यात्मक साहित्य भी विपुल है। उनकी व्याख्या- शैली बहुत सरल एवं शीघ्रबोधगम्य है। किसी भी विषय का जितने विस्तार से विचार होना चाहिए, वह उनमें विद्यमान है। पारिभाषिक शब्दों के गूढार्थों को १. द्रष्टव्य - जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ३, पृष्ठ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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