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________________ १०२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (५८) इस प्रकरण में यह स्पष्ट किया गया है कि मोहनीय कर्म की अधिकतम स्थिति ७० कोटानुकोटि सागरोपम है। जब यह स्थिति एक सागरोपम से भी कम रह जाती है, तब सम्यक्त्व उत्पन्न होता है। अतः प्रश्न उठता है, देशविरति चारित्र - लाभ कब होता है? इस संदर्भ में समयसुन्दर ने विविध आगमों के आधार पर विचार करते हुए यह बताया है। कि सम्यक्त्व -लाभ के पश्चात् मोहनीय कर्म की ९ पल्योपम की स्थिति का क्षय होने पर व्रत- प्राप्ति होती है । (५९) प्रस्तुत प्रसंग में यह बताया गया है कि एक बादर पर्याप्त जीव के आश्रित असंख्यात् बादर अपर्याप्त जीव उत्पन्न होते हैं । (६०) इस अधिकार में 'भगवतीवृत्ति' के आधार पर यह सिद्ध किया गया है कि भविष्यत् तीर्थङ्कर नरक में सामान्य जीवों की भाँति अशुभवर्ण, दुरभिगन्ध आदि के विपरीत शुभवर्ण, सुगन्धि आदि का उपभोग करते हैं । (६१) प्रस्तुत प्रकरण में ' श्रीभगवतीसूत्र' और उसकी वृत्ति के अनुसार यह कहा गया है कि कुछेक भुवनपतिदेव व्यन्तरदेवों से भी अल्प ऋद्धिवाले होते हैं। (६२) प्रस्तुत अधिकार में यह बताया गया है कि विग्रह - गति में जीव तीन समय तक और मतान्तर से चार समय तक अनाहारक रहता है। प्रमाण के लिए भगवतीसूत्र, प्रवचनसारोद्धार, संग्रहणीसूत्रवृत्ति आदि के उद्धरण दिये गए हैं। ग्रन्थकार ने जीवों की विग्रहगति का विचार करते हुए अन्त में दो-तीन और चार समय के अनाहारकत्वसूचक तीन यन्त्र भी दिये हैं । (६३) इसमें लिखा गया है कि कल्याणमंदिरस्तोत्रकर्त्ता सिद्धसेन दिवाकर 'विद्याधर गच्छ' के थे । लेखक ने यह बात 'सिंहासनद्वात्रिंशिका' के आधार पर सिद्ध की है । (६४) प्रस्तुत अधिकार में लेखक ने लोक में जो श्रावण, भाद्रव आदि बारह मास एवं प्रथमा, द्वितीया आदि पन्द्रह तिथियाँ प्रचलित हैं, उनके जैनधर्म में क्या नाम हैं- उनका उल्लेख किया है, जैसे- श्रावण को अभिनन्दन, भाद्रपद को प्रतिष्ठा, आश्विन को विजय आदि और प्रथमा को पूर्वांग, द्वितीया को सिद्धसेन, तृतीया को मनोहर आदि । (६५) प्रस्तुत प्रकरण में ' श्रीबृहत्कल्प' के आधार पर यह वर्णित किया गया है कि अति विशुद्ध जीव को क्षायोपशमिक और मन्द विशुद्ध जीव को औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है। (६६) इस प्रकरण में 'बृहत्कल्प' आधार पर सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्दर्शन के भेद का स्पष्टीकरण किया गया है। (६७) इसमें प्रज्ञापनासूत्र आदि ग्रन्थों के आधार पर यह बताने का प्रयास किया गया है कि स्त्री - वेद का जधन्य काल १ समय है, लेकिन उत्कृष्ट काल विविध ग्रन्थों में विविध प्रकार से उल्लेखित है- (१) ११० पल्योपम पूर्वकोटि पृथकत्व अधिक, (२) १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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