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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १०१ देवियों के शरीर में परिणित होते हैं। इससे देवियों में जो अंगस्फुरणादि लक्षण प्रकट होते हैं, उन्हीं से देवियों को देवों की कामाभिलाषा का ज्ञान होता है। उक्त बात की प्रमाणपुष्टि के लिए 'प्रवचनसारोद्धारवृत्ति' का उल्लेख किया गया है। (५०) इस प्रकरण में साधु द्वारा याचित बिडलवण आदि की परिष्ठापना-विधि का सप्रमाण निरूपण किया गया है। (५१) भगवान् ऋषभदेव का समवशरण १२ योजन होता है; फिर नेमि जिन तक दो-दो गाऊ कम होता हुआ पार्श्वनाथ का समवशरण पांच और महावीर स्वामी का चार कोश का होता है बारस जोयणमुसभे समसरणं च नेमिजिण जाव। दो दो गाऊ ऊणं पासे पण कोश चउ वीरे॥ प्रस्तुत गाथा और इसकी विषय वस्तु के शास्त्र-सम्मत न होने से इसे प्रस्तुत प्रकरण में अप्रमाण माना गया है। (५२) इसमें 'अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति' के अनुसार यह सिद्ध किया गया है कि मुक्ताफल अपने मूल स्थान से जुड़े रहने पर सचित्त और उससे विच्छिन्न हो जाने पर प्रासुक हो जाते (५३) प्रस्तुत अधिकार में वीरऋषि कृत 'श्रीपिण्डनियुक्तिलघुटीका' के आधार पर यह कहा गया है कि भेड़ी और ऊँटनी का दूध अभक्ष्य है। (५४) इस प्रकरण में 'ओघ-नियुक्ति' के आधार पर यह बताया गया है कि अचित्त वनस्पति की भी यतना होती है। (५५) इसमें इस बात को सप्रमाण सिद्ध किया गया है कि साधु-साध्वी या सामायिकपौषह आदि में स्थित श्रावक-श्राविका पर विद्युत-दीप आदि का प्रकाश गिरता है, तो उसे ईर्यापथिक-प्रतिक्रमण होता है। (५६) प्रस्तुत 'विचार' में बताया गया है कि महारौद्रध्यान से उपगत व्यक्ति पुनः पुनः नरक प्राप्त करता है और गर्भज तन्दुल मत्स्य के रूप में जन्म लेकर पुनः एक मुहूर्त के भीतर ही मरकर नरकलोक चला जाता है। उपर्युक्त तथ्य का उल्लेख 'जीवाभिगमसूत्र' और उसकी वृत्ति में निर्दिष्ट है। (५७) प्रस्तुत सन्दर्भ में 'जीवाभिगमसूत्र' की मलयगिरि-टीका के आधार पर क्षुल्लकभव के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है और यह बताया गया है कि एक मुहूर्त में ६५५३६ क्षुल्लक-भव होते हैं। इस बात को चूर्णि के आधार पर भी सिद्ध किया गया है। इस प्रकरण में इस बात पर विचार किया गया है कि एक क्षुल्लक-भव में कितने श्वासोश्वास होते हैं? इसके उत्तर में यह सिद्ध किया गया है कि श्वासोश्वास में २५६ अवलिकाएँ होती हैं। एक मुहूर्त में १,६७,७७,२१६ अवलिकाएँ मानी गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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