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________________ 371 जैन धर्म में गृहस्थ नारीः एक ऐतिहासिक अध्ययन प्रकाश डालते हैं, लेकिन मूर्तिकला में इसके कोई प्रमाण परिलक्षित नहीं हैं। इससे स्पष्ट होता है कि समाज में पर्दा प्रथा नहीं थी। ____ भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही वीर स्त्रियों, माताओं, बहनों की प्रशंसा की गई है। उनके अदम्य साहस एवं त्याग के कारण इस देश को नयी दिशा मिली है। जब-जब देश पर संकट आया है वे देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करती रहीं। जैन सूत्रों में कुछ विशिष्ट स्त्रियों को विविध कलाओं में निष्णात बताया गया है। वे अस्त्र-शस्त्र धारण कर युद्धों में भाग लेती थीं। स्थानांग टीका में टीकाकार अभयदेव ने चौलुक्य पुत्रियों की प्रशंसा की है। विपाक सूत्र में स्त्रियों द्वारा पुरूष के अस्त्र-शस्त्र धारण करने का उल्लेख है। बृहतकल्पभाष्य" पीठिका में एक गणिका को चौसठ कलाओं में निष्णात बताया गया है। वाणिय ग्राम की कामध्वजा (काम कन्या) गणिका विविध कलाओं में निष्णात थी। जैन पुराणों में उल्लेख है कि स्त्रियाँ अपने प्राणपति को युद्ध में भेजकर नवीन घाव बड़े गौरव से देखना चाहती थीं क्योंकि उनके पति के शरीर के घाव पुराने पड़ गये थे। वे अपने पति से विजय की आशा करती थीं। पराजित पति को तिरस्कृत दृष्टि से देखती थीं। जैनेत्तर साहित्य राजतरंगिणी में वर्णित - सुगन्धा, दिद्वा तथा पृथ्वीराजविजय में वर्णित रानी कर्पूरदेवी, गुजरात की मेकिदेवी, मेवाड़ की कुमारदेवी के त्याग वीर पलियों के महत्वपूर्ण संदर्भ हैं।" __ वेश्यावृत्ति भारत की एक प्राचीन संस्था रही है। ऋग्वेद में नृतु शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ नर्तकी होता है। वात्स्यायन ने वेश्याओं को नौ वर्गों में बांटा है - कुंमदासी, परिचारिका, कुलटा, स्वैरिणी, नटी, शिल्प कारिका, प्रकाश विनष्टता, रूपाजीवा और गणिका।६६ जैन साहित्य में भी वेश्याओं पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। आवश्यकचूर्णि एवं वसुदेवहिण्डी में गणिकाओं की उत्पत्ति की कथा है कि राजा को भेंट में प्राप्त कन्याएँ, रानी के डर के कारण राजा ने गणराज्यों को सौंप दी थीं, तभी से ये गणिकाएँ कहलाने लगीं। जैन सूत्रों में चम्पा नगरी की धनसम्पन्न गणिका देवदत्ता जो ४ कलाओं में निष्णात, २६ प्रकार से रमण करने वाली, २१ रतिगुणों से युक्त, ३२ पुरूषोपचार में कुशल, १८ देशी भाषाओं में विशारद, नवयौवना और श्रृंगार आदि से सम्पन्न थीं, का उल्लेख मिलता है। सूत्रकृतांग चूर्णी में उल्लेख है कि वेश्याएँ वैशिकशास्त्र में पंडित होती थीं। दत्तावैशिक (दत्तक) नामक विद्वान ने पाटलिपुत्र की वेश्याओं पर एक दुर्लभ ग्रन्थ की रचना की थी।०० वाणियग्राम की काम ध्वजा, नन्दिनी, पाटलिपुत्र की कोशा और उपकोशा (दोनों बहिनें), उज्जैयिनी की प्रधान गणिका देवदत्ता प्रमुख वेश्याएँ थीं। इसके अतिरिक्त राजगृह की मगह सुंदरी और मगहगिरि गणिकाएँ अपनी कलाओं के लिए सुविख्यात थीं। ___पुराणकालीन भारतीय समाज में वेश्याओं का अपना पृथक स्थान था। यही कारण है कि आचार्यों की दृष्टि भी उनकी ओर गयी। उनके लिए प्रशंसा मूलक पद बनाये गये। हरिवंश पुराण०२ में साकेत नगर की सुन्दर रूपवती बुद्धिसेना वेश्या का उल्लेख है जिस पर मुग्ध होकर मुनि विचित्र मती ने मुनि पद त्याग दिया था। उस समय राजकुमारों को व्यवहारिक शिक्षा वेश्याएँ प्रदान करती थीं। जैन पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि समाज में इनके दो वर्ग थे - प्रथम जो नृत्य-गीत द्वारा आजीविकोपार्जन करती थीं और द्वितीय, शरीर बेचकर जीविकोपार्जन करती थीं। प्रथम प्रकार की वेश्या को वारांगना भी कहा जाता था। ये मांगलिक कार्यों की अवसरों पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करती थीं। देवदासी के रूप में इनका उल्लेख किया जा सकता है। डॉ. यू. एन. घोषाल ने चाऊ-जू-क्वा के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि गुजरात के ४००० मंदिरों में २०,००० देवदासियाँ रहती थीं। द्वितीय प्रकार की वेश्याओं से तो मुनि तक भ्रष्ट हो जाते थे। ये अपना शरीर बेचकर जीवन निर्वाह करती थीं। ___ महापुराण में वेश्याएँ ग्राहवती, कुटिल वृत्ति, अलंध्य, सर्वभोग्या, विचित्रा, निम्नगा कही गई हैं। समराइच्छा कहा में धन को वेश्याओं का पति कहा गया है। जैन सूत्रों में वेश्याओं पर विश्वास करने को कहा गया है। दोनों पुराणों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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