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________________ 370 Sumati-Jnana होती थीं, जिन्हें वे अपने अन्तःपुर में रखते थे, उदाहरणार्थ-कृष्ण के अन्तःपुर में ०८ पटरानियाँ थीं, भरत के पास ६६००० रानियाँ थीं, लक्ष्मण के पास १६००० रानियाँ व ०८ पटरानियाँ थीं, रावण के पास १८००० रानियाँ थीं। ये वर्णन आख्यानात्मक एवं अतिशयोक्तिपूर्ण हैं तथापि राजाओं के पास एक से अधिक रानियाँ होती थीं। इस बहुपत्नित्व को समाप्त करने के लिए जैनाचार्यों ने बहत प्रयन्त किया और राजा को एक पत्नीवत्ति होने का उपदेश दिया जिससे प्रजा उनका अनुसरण कर सके। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि शिष्टवर्ग ने इस प्रथा का मान्यता नहीं दी। भारतीय समाज में विधुर एवं विधवा विवाह के उदाहरण भी मिलते हैं। उत्तराध्ययन टीका में सार्थवाह के दूसरे विवाह का उल्लेख है। विधवा के रूप में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं कही जा सकती। औपपातिक सूत्र में वेधव्य जीवन से सम्बन्धित कुछ विधवाओं के उल्लेख हैं जिन्होनें आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। धनश्री और लक्षणावती बाल विधवाओं (बालरंडा) ने संसार से संतप्त होकर श्रमणियों की दीक्षा ले ली। जैन पुराणों में भी विधवाओं को सम्मान जनक स्थान प्राप्त नहीं था, उन्हें मांगलिक कार्यों में निषेध किया गया था। विधवा होने पर स्त्रियाँ आत्महत्या कर लेती या व्रतोपवास, पूजा-अर्चना करती हुई परलोक सिधार जाती थीं। वे साधा जीवन व्यतीत कर कोई आभूषण ग्रहण नहीं करतीं! ___ जैन पुराणों में यत्र-तत्र तलाक सम्बन्धी उदाहरण भी मिलते हैं। महापुराण में उल्लेख है कि जैनाचार्यों ने पति-पत्नी के वैमनस्यपूर्ण जीवन को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए पारस्परिक सौहार्द्रता का आदर्श प्रतिस्थापित किया। स्त्रियों के पतिव्रत के पालन पर विशेष बल दिया गया, परन्तु यह आदर्श स्थापित नहीं हो सका। पद्मपुराण के अनुसार पतित्यक्ता पत्नी अपने माता-पिता के घर में रहती थी। एक अन्य स्थान पर सास द्वारा कष्ट पहुँचाने का भी उल्लेख है। महापुराण में उल्लेख है कि परित्यक्ता स्त्री चाहे वह चक्रवर्ती की पुत्री ही क्यों न हो उसे अपार कष्ट सहने ही पडते थे। आवश्यकची में उल्लेख है कि वणिक स्त्री ने नियोग प्रथा से पत्र उत्पन्न किया था। प्राचीन जैन सूत्रों में सती प्रथा के अत्यल्प उदाहरण प्राप्त होते हैं। महानिशीथ सूत्र' में एक स्थान पर उल्लेख है कि किसी राजा की विधवा कन्या, अपने परिवार की अपयश से रक्षा करने के लिए सती होना चाहती थी, लेकिन उसके पिता के कुल में यह रिवाज नहीं था। इसलिए उसने यह विचार स्थगित कर दिया। जैन महापुराण में सती प्रथा का उल्लेख हुआ है कि पति के युद्धस्थल में वीरगति प्राप्त करने पर पत्नियाँ जौहर वृत का पालन करती थीं अर्थात् उनके मृत शरीर के साथ चिता में भस्म हो जाती थीं या आत्महत्या कर लेती थीं। अन्य जैनेत्तर साहित्य से पूर्व मध्यकालीन राजपूत समाज में स्त्री प्रथा के उदाहरण देखने को मिलते हैं। ___प्राचीन काल में आधुनिक काल की मांति पर्दाप्रथा का प्रचलन नहीं था, यद्यपि स्त्रियों के बाहर आने-जाने पर कुछ साधारण प्रतिबंध अवश्य थे। उत्तराध्ययन टीका" में यवनिका (जवणिया) का उल्लेख है, शकटाल की कन्याओं द्वारा भी यवनिका के भीतर बैठकर, राजा की प्रशंसा में लोक-काव्य पढ़े जाने का उल्लेख मिलता है। लेकिन स्त्रियाँ बिना किसी प्रतिबंध के बाहर आ-जा सकती थीं। औपपातिक सूत्र में श्रेणिक आदि राजाओं का अपने अन्तःपुर की रानियों सहित महावीर के दर्शन करने का उल्लेख है। कतिपय ऐसे भी उदाहरण है जब स्त्रियाँ अपना दोहद आदि पूर्ण करने के लिए पुरूष वेश धारण कर, कवच पहन, आयुध आदि ले, जंघाओं में घण्टियाँ बांध भ्रमण करती थीं। जैन पुराणों में भी यत्र-तत्र पर्दा प्रथा के उदाहरण प्राप्त होते हैं। पद्मपुराण में उल्लेख है कि वर गृहागमन पर वधु अपने मुख पर चूंघट रखती थी। महापुराण के अनुसार सुंदर स्त्री विचित्र पद न्यास अर्थात् अनेक प्रकार से चरण रखने वाली रसिका (रसीली) तथा सालंकारा होकर अपने पति का अनुरंजन करती थी। अतः जैन सूत्रों में वर्णित यवनिका शब्द का तात्पर्य चूंघट के लिए ज्ञात नहीं होता और यत्र-तत्र पुराणों के संदर्भ भी विशेष समय की पर्दा प्रथा पर अत्यल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012067
Book TitleSumati Jnana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivkant Dwivedi, Navneet Jain
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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