SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ पनरै सौ पैंतालबें, सुद बैसाख सुमेर। संवत १५४१ में प्रारम्भ कराया गया था और मूलनायक की प्रतिष्ठा थावर बीज थरपियौ, बीकै बीकानेर ।। वि० सं० १५७१ में संपन्न हुई। इसके शिलालेख का पाठ इस प्रकार बीकानेर स्थापना के बाद से ही दिन दूना और रात चौगुना श्री हैएवं समृद्धि से समृद्ध होता रहा और इसके लिये भी निम्न दोहा प्रसिद्ध १.संवत १५७१ वर्षे आसौ २.सुदी २ रवौ राजाधिराज ऊंट मिठाई इसतरी, सोनोगहणो साह । ३. श्री लूणकरण जी विजय राज्ये पाँच चीज पृथ्वी सिरै, बाह बीकाणा वाह ।। ४.साह भांडा प्रासाद नाम तेलोभारत की आजादी के बाद राजस्थान में भी देशी-रियासतों का ५.क्य दीपक करापितं सूत्र० पुनर्गठन हुआ है तो बीकानेर राज्य के तीन जिले हो गये - (१) बीकानेर ६.गौदा कारित (२) श्रीगंगानगर (३) चुरु । बीकानेर जिला मरुभूमि की गोद में निर्माण की शैली भी दृष्टि से ५२ प्रकार के जिनालय होते हैं, राजस्थान में आथूणै-उतरादै २७.११ और २९०३ उत्तरी अक्षांश और उनमें से यह त्रैलोक्य दीपक' शैली का है एवं इसका निर्माण कार्य ७१५४ और ७४.१२ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है । प्रस्तुत आलेख में सूत्रधार गौंदा की देखरेख में सम्पन्न हुआ। बीकानेर शहर के एक जैन प्रासाद-भाण्डासर जैन मंदिर की वास्तुकला इस मंदिर के निर्माण से सम्बन्धित एक घटना ४८३ वर्ष जाने पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया गया है। के बाद आज भी जन-जन की जुबान पर है एवं यह घटना बताती है बीकानेर में सबसे प्राचीन जैन मंदिर श्री चिन्तामणि जी का है कि पूर्वजों में धर्म का मर्म समझने की कितनी विलक्षण बुद्धि थी एवं जो कन्दोई बाजार (भुजिया बाजार) में है जिसकी प्रतिष्ठा वि० सं०१५६१ वे किस प्रकार एक-एक बूंन्द द्रव्य का सदुपयोग करना जानते थे। बैसाख सुदि रविवार को हुई और उसके बाद दूसरा प्राचीन मंदिर इस मंदिर के निर्माता शाह भांडा घी का व्यापार करते थे। एक 'भाण्डासर मंदिर' है जिसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १५७१ आसौज सुदि दिन घी के मटके में एक मक्खी गिर गयी । शाह ने तुरन्त मक्खी को २ को हुई । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस भाण्डासर प्रासाद को लेकर निकाल कर उंगली की सहायता से फेंक दिया, लेकिन मक्खी फेंकने अनेक विद्वानों ने उसके अलग-अलग पक्षों को लेकर आलेख प्रकाशित से भूमि पर दो चार बूँदें घी की भी गिर गयी तो उन्होंने उठकर भूमि पर करवाये हैं। किन्तु मैने अपने जीवन काल में जब जब इस प्रासाद का पड़ी घी की बूंदों को वापिस उंगली की सहायता से पड़ी अपनी जूती अवलोकन किया, मुझे इस प्रासाद की निर्माण शैली में कुछ न कुछ नया पर रगड़ दिया । इस समय मंदिर का निर्माण कार्य देखने वाला मिस्त्री ही नजर आया। वहाँ पास में खड़ा था । वह सेठ की यह हरकत देखकर अपने मन में इस मंदिर का सूत्रधार जैसलमेर का गोदा नाम का व्यक्ति सोचने लगा कि यह व्यक्ति क्या मंदिर बनवायेगा? अत: उसने सेठ के था। इसके निर्माण कार्य में मुख्यरूप से जैसलमेर का टिकाऊ पत्थर मन की थाह लेने के लिए कहा कि सेठ जी इस मंदिर को निरुपद्रव एवं और खारी के लाल पत्थर का उपयोग हुआ। इसके भव्य रंग-मंडप, सुदृढ़ बनाने के लिये इसकी नींव में घी डालने की जरूरत है। इतना विशाल गंबज और शिखर की निर्माण कला इतनी सुन्दर है कि आदमी कहकर वह तो चला गया और जब दूसरे दिन सुबह आया तो यह उसको देखते ही भाव विभोर हो उठता है । इस तिमंजिले भव्य जिनालय देखकर विस्मित रह गया कि नींव में घी डाला जा रहा है तन्त उसने का शिखर भारत के सर्वोच्च शिखरों में से एक है। मंदिर को विशालता सेठ के पैर पकड़ लिये और सही बात बयान कर दी। इस बात से लगाई जा सकती है कि इसके परकोटे की लम्बाई सामने उनकी बात सुनकर सेठ ने कहा कि उस भूमि पर गिरे हुए घी से १७७ फुट और पीछे से १९० फुट है। इसी प्रकार इसकी चौड़ाई पर चींटियां जमा हो जाती और अनजाने में उन पर पैर पड़ने से जीव सामने से १४५ फुट ६ इंच और पीछे से १०५ फुट ६ इंच है। मूल हिंसा होती जब कि जूती पर घी चुपड़ने से जूती मजबूत होगी और हिंसा मंदिर की लम्बाई ७२ फुट ६ इंच व बाह्य मण्डप २२ फुट ६ इंच, रूकेगी। उन्होनें कहा कि सद् कार्यों में द्रव्य का उपयोग करो दुरुपयोग कुल ९५ फुट है। इसी प्रकार इसकी पीछे की चौड़ाई ५२ फूट ६ इंच नहीं। और सामने की ओर ३९ फट बैठती है । तीन मंजिला होने के इसके निर्माण के लिए जैसलमेर से पत्थर मंगाया गया था एवं फलस्वरूप व नगर में ऊँचे स्थान पर निर्मित होने के कारण इसकी यहां का पानी खारा होने के कारण निर्माण कार्य के लिए पानी यहाँ से समतल भूमि से ऊँचाई ११८ फुट और मंदिर के फर्श से ३९ फुट है। ८ मील दूर 'नाल' नामक गांव से मँगाया गया ताकि मंदिर सुदृढ़ रहे । इसी भांति मंदिर परकोटे का ओसार १० फुट चौड़ा उठाया हुआ है और उन व्यक्तियों की सूझ-बूझ का ही परिणाम है कि आज लगभग ५०० ऊपर की ओर कंगूरे २ फुट ६ इंच चौड़े हैं। वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी यह मंदिर उसी शान से सीना ताने खड़ा है। इस मंदिर का निर्माणकार्य शाह भाना के पुत्र शाह भांडा द्वारा पीले पाषाण के शिखर पर संगमरमर के सफेद चूने से पलस्तर किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy