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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ करूणा का स्पन्दन साध्वी मोक्षरसाश्री साधकों की साधना भूमि कहलानेवाली इस भारत भूमि पर अनेकानेक धर्मवीर, कर्मवीर महापुरुषों ने जन्म लेकर अपने कर्मक्षेत्र को उज्ज्वल समुज्ज्वल ही नहीं पर अतिउज्ज्वल किया है । उसी कडी में जुड़नेवाले जीवन के अंधियारे में प्रकाशवत् हैं ऐसे प. पू. प्रवर स्वजीवन में सद्गुणों का साज सजाकर जीवन क्षण में जीवन को पहचानकर, जीवन बनाने के लिए सतत प्रतिपल जागृत ही रहे आचार्यश्री का तो कहना ही क्या? जो जीवन की आड़ी टेडी और बीहड़ पगदंडियों में जिन शासन सेवा का सम्यज्ञान का, सम्यक तप का अवसर प्रदान कर प्रकाश स्तंभ का कार्य करते हैं । आपके विराट् व्यक्तित्व का चित्रण एवं सदगुणों का वर्णन करना मेरी शक्ति में नहीं है, फिर भी हृदय की बलवती प्रेरणा कुछ न कुछ कहने के लिये विवश करती है, महाकवि कालिदास ने यथार्थ ही कहा है । ____वजदपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि वास्तव में संतों के हृदय की थाह नहीं मिल सकती है । जीवन की चलती घड़ियों में संकटकालीन स्थिति आने पर गुरु कभी भी आकुल व्याकुल नहीं होते । उस समय उनका हृदय वज़ से भी कठोर होता है । मगर, दूसरे प्राणियों के संकट के समय वही हृदय फूल से भी अति कोमल हो जाता है । ऐसा ही जीवन जी रहे हैं परम श्रद्धेय पू. हेमेन्द्र सूरिजी म.सा. । उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी कहा जाय तब भी अतिशयोक्ति नहीं होगी । आपने जैन समाज की सेवा की है, एवं कर रहे हैं । आपकी भावना में विनय, हृदय में सरलता, वाणी में मधुरता, स्वभाव में विनम्रता से युक्त आपके जीवन में ज्योत जाग रही है । विलक्षण बुद्धि, तेज स्मरण शक्ति, व्यवहार कुशलता आदि गुणाभिभूत होने से ही आपको श्रीसंघने राष्ट्रसंत शिरोमणि पद से अलंकृत किया । "वसंतवत् लोक हित चरन्त" वृक्ष का ऐश्वर्य वैभव वसंत से ही प्रकट होता है । किंतु जीवन को पतझड़ में ऐश्वर्य के अंकुर प्रस्फुटित करने में प्रेम एवं स्नेह के नानाविध पुष्पों को खिलाने का श्रेय आप जैसे महापुरुषों को जाता हैं । सागर के अंतःस्थल में प्रविष्ठ हो उसकी गहराई का माप लेना कठिन है । वैसे ही महान आत्मा के जीवन को परखना कठिन है। फिर भी सद्गुणों का अभिनन्दन करते हुए कहूंगी चिरायु होने के साथ आपके जीवन की सौरभ दिदिगंत में प्रसारित हो इन्हीं भावों के साथ जीवन में शीतलता है जैसे मलयगिरी चन्दन । प्रतिपल हृदय में धडकता है, करुणा का ही स्पन्दन" पू. आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धभाव भरा अभिनन्दन । - यशस्वी हो साध्वी मोक्षयशाश्री मोह के दुःखों को दूर करने वाले, चित्तकी स्थिरता को करानेवाले सहज गुण का पालन करने वाले, उपशम भाव को धारण करने वाले ऐसे पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के चरणों में कोटिशः वंदना । पू. आचार्य भगवंत अनेकानेक गुणों से समृद्ध हैं । हमेशा बड़ों का गुणगान करने में तत्पर हैं । आचार्य भगवंत उपशमभाव से ओतप्रोत हैं । उपशमभाव से अनेक लाभ होते हैं । इससे समाधि प्राप्त होती है । किसी भी समय कैसा भी प्रसंग उपस्थित हो जाये, फिर भी समाधि भाव में ही रहते हैं । संसार में हर एक व्यक्ति किसी न किसी को अपना आदर्श मानता है, बनाता है, साहसिक व्यक्ति सिकन्दर को आदर्श मानता है । कुशल राजनीतिज्ञ बनने के लिए कोई चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ को आदर्श बनाता है । कोई खिलाड़ी अच्छे नामांकित खिलाडी को अपना आदर्श बनाता हैं । वैसे ही आचार्य भगवंत आत्महित लक्षी सिद्ध परमात्मा को अपना आदर्श मानते हैं । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 30 हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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