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________________ श्री राष्टसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ आपश्री की आचार्य पदवी भी हमारी ही मातृभूमि आहोर नगर में ही हुई थी । इस बात का हमें गर्व हैं । आचार्य पदवी के बाद आपके हाथ से अनेकानेक शासन के कार्य हुए उसमें मेरी और मेरे साथ मेरी संसारी बड़ी बहन एवं मासी की दीक्षा भी ऐसे शांत दांत गंभीर आचार्य भगवंत के हाथों हुई, उसका हमें बहुत गर्व हैं । आपश्री इस 86 वर्ष की आयु में सतत अप्रमत्त एवं इतनी उमर में भी आपश्री आठम चउदस को आयंबिल करने का आपका नियम अद्वितीय हैं । प्रतिदिन रात को तीन बजे उठकर जाप करना, दोनों टंक अप्रमत्त पण खड़े खड़े प्रतिक्रमण बगैरे आपकी क्रिया आपके निकट मोक्ष की सूचक हैं । आप तरे और आप का सान्निध्य प्राप्त कर हमें भी तारे ऐसी शुभेच्छा के साथ । आशीष की आकांक्षा साध्वी पुनीतप्रज्ञाश्री 'तीथयर समो सूरि' परमात्मा ने आचार्य भगवंत को तीर्थंकर के तुल्य बताया है । तीर्थकर परमात्मा की पाट परंपरा को चलाने की पदवी आचार्य भगवंतों को मिलती है । वह स्थान आपने प्राप्त किया है आप उतनी ही वफादारी से उसका मूल्यांकान समझकर जिनशासन की प्रजा का पालन भी कर रहे हो । समकित जीव गुलाब के चारों तरफ कितने ही कांटे होने पर भी उसे गुलाब का छोड़ कहते हैं, कचरा पेटी में से हीरा ग्रहण करते हैं । खान में से 1000 किलो मिट्टी निकलती है और उसमें 1 किलो स्वर्ण निकलता है, तो उस खान को स्वर्ण की खान कहते हैं । सर्वत्र सद्गुण को देखो तो शुभ माना जाता है । उसी प्रकार संसार में कचरा भरा हैं, उसमें कांटे, मिट्टी, दुर्गुणी, वगैरे सब कुछ है, फिर भी आप कमल जिस प्रकार कादव के साथ रहता है, उसीमें उत्पन्न होता है फिर भी अपने आप को कादव का स्पर्श होने नहीं देता, ठीक उसी प्रकार आपके सामने भक्तों की टोली आती हैं । आपसे विनंती करते हैं 'बावसी! ओ मेलो कपड़ो जूनो कपड़ो नाखापो, शिष्यों ने दियो पो" फिर भी आप अपने चारित्र में निष्ठ होने के कारण श्रावक के प्रलोभन से चलित नहीं होते हैं । एक बार हमने गुरुदेव से कहा, गुरुदेव यह झोली बहुत मोटी और अच्छी नहीं है । दूसरी बनालो । उन्होंने तुरन्त ही कहा नहीं चलेगा मुझे तो है, वही बराबर है । आज आप गच्छाधिपति होते हुए भी एक छोटा सा बालक आ जाये तो भी उसके साथ मधुरवाणी में बातें करते हैं, हमेशा शुद्ध चारित्र पालन का ही लक्ष्य रखते हैं । आपका जो शुभ नाम है, उसी प्रकार अपना चारित्र बताया हेम यानी स्वर्ण और 'इन्द्र' यानी राजा (रत्न) स्वर्ण के राजा, दुनिया पूरी इसी पर जीवन जी रही है । यानी आपही गच्छ के नायक है । जो आचार्य भगवंत नहीं होते तो परमात्मा के शासन पर राज कौन करता? और राज्य का मालिक कोई न होता तो आज हमारे पास परमात्मा की अद्भुत देन कैसे आती? परमात्मा तो सिद्धि वधू को वर लिये अब आप ही हमारे लिए तीर्थंकर हो, अतः मार्ग बताने वाले हो । दर्शन ज्ञान चारित्र जो रत्नत्रयी है वह आपके नाम में छिपा है और जीवन में भी है । आपकी निस्पृहता, निष्कपटता और निरभिमानता के गुण देखकर हमारी आंखें भी खुल जाती है । आप जैसे हम भी बने यही प्रार्थना। ऐसे ही आशीष की आकांक्षा है । हेमेन्द्र ज्योति हेगेन्द्र ज्योति 29 हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति sealed S Evenionlaoniliorial
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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