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________________ श्री राष्टसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ परम श्रद्धेय आचार्यश्री के जीवन के एक चमत्कारपूर्ण प्रसंग का मुझे आज भी अच्छी प्रकार स्मरण है । प्रसंग पालीताणा का है । उस समय परम पूज्य आचार्यदेव श्री राजेन्द्र भवन, पालीताणा में विराजमान थे । आपके दर्शनार्थ सुश्रावक श्री सुमेरमलजी लुंकड़ एवं सुश्रावक पृथ्वीराजजी पालीताणा आए थे । एक दिन वे प्रातः पू. दादा के दर्शन करने पहाड़ पर गये । लगभग ग्यारह बजे के आसपास वे श्री राजेन्द्र भवन आए । उन्होंने भोजन आदि किया और लगभग एक बजे पू. आचार्य श्री की सेवा में आए । दर्शन वंदन करने के पश्चात् वार्तालाप करने लगे । इसी बीच श्रीमान पृथ्वीराज जी ने कहा - "बावजी! आज शाम को पांच बजे की फ्लाईट से हम जा रहे हैं ।" “कहाँ जाओंगे?" पू. आचार्य श्री ने पूछा? "बावजी ! हम यहाँ से भावनगर जावेंगे । वहाँ से बम्बई के लिये हमारी फ्लाईट है ।" श्रीमान सुमेरमलजी लुंकड़ ने बताया । उनकी बात सुनकर पू. आचार्य भगवन कुछ क्षण मौन रहे । उसके पश्चात् बोले - "आप आज नहीं कल जाना । आपका आज जाना नहीं हो सकता ।" कल जाने की बात सुनते ही श्रीमान पृथ्वीराजजी तत्काल बोल उठे - "बावजी ! हमारा आज जाना बहुत जरुरी है। आजकी फ्लाईट के टिकिट भी हमारे पास है ।" "आप कुछ भी करो, आपको आज नहीं कल जाना है ।” पूज्य आचार्यश्री ने दृढ़ स्वर में फरमाया । दोनों सुश्रावक कुछ क्षण चिंतन में डूब गये और फिर पूज्यश्री के कथन को ध्यान में रखते हुए दोनों ने अपनी यात्रा स्थगित करने का मानस बना लिया तथा श्री राजेन्द्र भवन के मुनीम श्री प्रकाश जैन को बुलाकर अपने टिकिट देकर भावनगर हवाई अडडे से सम्पर्क कर निरस्त करवाने का कहा | श्री प्रकाश जैन ने उसी क्षण भावनगर हवाई अड्डे पर फोन से सम्पर्क किया । श्री जैन टिकिट निरस्त करने की बात कहते इससे पूर्व ही वहाँ के किसी अधिकारी या कर्मचारी ने कहा - "कृपया क्षमा करें, आज शाम को पांच बजे भावनगर से बम्बई के लिये जो वायुयान उड़ान भरने वाला था, वह फ्लाईट अपरिहार्य कारणों से निरस्त हो गई है ।" श्री प्रकाश जैन ने उपर्युक्त सूचना पू. गुरुदेव के समक्ष बैठे दोनों श्रावकजी को सुना दी । इस सूचना को सुनते ही वे दोनों आश्चर्य चकित रह गये । पू. आचार्यश्री का कथन सत्य हुआ । विस्मयकारी बात है कि क्या गुरुदेव को अभिज्ञान हो गया था अथवा यह गुरुदेव की वचन सिद्धि है । कुछ कहा नहीं जा सकता । दोनों सुश्रावक अभी भी नियमित रूप से पू. आचार्य भगवन की सेवा में आते रहते हैं तथा बिना गुरुदेव की अनुमति के तथा बिना मांगलिक लिये जाते नहीं है। _पू. आचार्य भगवन के जीवन के ऐसे और भी प्रसंग है । जिन्हें मैंने आपके सान्निध्य में रहकर अनुभव किया है । आज पू. गुरुदेव के पावन सान्निध्य में रहते हुए मुझे छ: वर्ष हो गये हैं । यह मेरे लिये सौभाग्य की बात है। यही कामना है कि पू. गुरुदेव का वरदहस्त हम पर बना रहे, वे इसी प्रकार हम पर अपनी कृपा और आशीर्वाद बनाये रखे जिससे हमारी साधना का मार्ग प्रशस्त होता रहे । मैं अपने हृदयोद्गार को बराबर अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूं । फिर भी कहना चाहूंगा मधुर वाणी है जिनकी पहचान | अरिहन्त का जो करते ध्यान || सरल स्वभाव शान्तमूर्ति सुधाकर हेमेन्द्र सूरि है सन्त महान || प. पू. आचार्यदेवेश के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ के आयोजन की मैं हृदय की गहराई से शुभकामना करता हूं और आपके परम पावन चरणों की चन्दन सम रज को अपने मस्तक पर धारण कर उनके चरण कमलों में काटि कोटि वंदन करता हूं । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 13 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति beafhnintentional
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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