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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ रहें हों तो उनके बीच में कभी भी नहीं बोलना चाहिये । जब पूछा जाय तभी बोलना चाहिये और उतना ही बोलना चाहिये जितना पूछा गया है । उसके अतिरिक्त जो कुछ बोलना है, उस पर पहले विचार कर लेना चाहिये । विचार करने के उपरांत बोलना अच्छा माना जाता है । बोलने के पश्चात उस पर विचार करने से पश्चाताप के सिवाय कुछ मिलने वाला नहीं है । कहा है : बिना विचारे जो करे, वो पाछे पछताय । काम बिगारे आपुनो, जग में होत हेसाय || हंसी का पात्र बनने से तो अच्छा है कि जो कुछ किया जाय या बोला जाय विचारकर ही किया जाय या बोला जाय। तौल तौल कर बोलना अच्छा माना गया है । आज परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य भगवन, श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. अपने जीवन की छियासी वर्ष की आयु में भी सक्रिय हैं । आपश्री की दीक्षा पर्याय के 63 वर्ष हो गये हैं । संयम यात्रा के इतने वर्ष व्यतीत हो जाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । आपश्री से सीखने के लिये बहुत कुछ है । यदि हम उनसे कुछ सीख नहीं पाये, उनको अनुसरण नहीं कर पाये तो सब कुछ व्यर्थ है । मैंने तो समय समय पर उनसे मिलने वाली शिक्षाओं की एक झलक की ओर ही संकेत किया है । उनके आंतरिक गुणों का वर्णन करना मेरी सामर्थ्य के बाहर है । वे सद्गुणों का भण्डार हैं । आज जब उनके जीवन अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के पावन अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है तो हृदय आनन्दित है । शासनदेव से यही विनम्र निवेदन है कि वे श्रद्धेय आचार्य भगवन को सुदीर्घकाल तक स्वस्थ एवं प्रसन्न रखें ताकि हमें यथोचित मार्गदर्शन मिलता रहे । इसी हार्दिक भावना के साथ उनके श्रीचरणों में कोटि कोटि वंदन । एक चमत्कार की अनुभूति मुनि लवकेश विजय 'सुधाकर भारत भूमि और इसकी संस्कृति कोई हिल स्टेशनों अथवा माडलों की भूमि नहीं है अपितु यह रत्नगर्भा वसुंधरा तीर्थंकरों की भूमि है, संतो-महंतों की भूमि है । इस धर्मधरा पर अनेक महान, आचार्य हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन को त्याग तप और संयम साधना में अर्पित कर सार्थक किया है । मानव जीवन की सार्थकता इसमें भी है कि व्यक्ति अपना सर्वस्व समाज हित में समर्पित कर दे, साथ ही कोई ऐसा कार्य करे जिससे समाज गौरवान्वित हो । इस श्रृंखला में श्री अभिधान राजेन्द्र कोश के रचयिता, कलिकाल कल्पतरु, शासन शिरोमणि, श्री सौधर्मवृहत्त तपागच्छ के नायक, प्रातःस्मरणीय विश्व पूज्य श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने समाज को नए दिशा निर्देश देकर अद्भुत जागृति उत्पन्न की । उन्हीं के आशीर्वाद से वर्तमान में उनकी पाट परम्परा में षष्टम पट्टप्रभावक शूक्ष्म चारित्रपालक, वचनसिद्ध, चारित्रचूड़ामणि, शासन सम्राट, राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. अनेक गुणों के धारक है । आपके गुणों का वर्णन करने में मेरी लेखनी और मैं स्वयं समर्थ नहीं हूं। मेरे लिये तो उनके गुणों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । यह तो मेरा परम पुण्योदय ही है कि लगभग छ: वर्ष से मुझे पूज्य आचार्यदेव की सेवा में रहते हुए सेवा करने का अवसर मिल रहा है । पू. आचार्य श्री के चरणों की रज प्राप्त करने का अवसर मुझे पालीताणा में प्राप्त हुआ, जहां मैंने आपश्री की संयम साधना को निकट से देखा । आपश्री रात्रि में एक बजे उठकर एक बजे से प्रातः चार बजे तक माला फेरते हैं, जाप करते हैं । अपनी आयु के छियासीवें वर्ष में भी आपश्री की संयम साधना अबाध रूप से चल रही हैं । इसके साथ ही आपके जीवन में कहीं कोई छिपाव नहीं है । मैंने तो आपश्री का जीवन खुली पुस्तक की भांति पाया है । आपका जीवन चंदन निर्मित पुस्तक के समान है | जिसकी सौरभ का अनुभव जन जन को हुआ है और हो रहा है । जिस साधक की साधना कठिन होती है, उसे चमत्कार करने की आवश्यकता नहीं होती, चमत्कारपूर्ण घटनाएं उसके जीवन में स्वतः घटित हो जाती है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 12 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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