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________________ ग्रंथनायक द्वारा रचित गुरगुणपच्चिसा (तर्ण-चौपाई सूरि विजय राजेन्द्र हैं प्यारे जिन शासन के ध्रुव सितारे सत्यमार्ग का बोध कराकर चले गये वो मोक्ष के पथ पर गुरू ज्ञानी गुरू दीप समाना अध्यात्म मारण पहिचाना मति श्रुत ज्ञान को है बहुपाया प्रेम पीयूष केशर बरसाया D0000 जय गुरूदेव है सुमिरन साँचा जिनके चरणे नवनिधिवासा गुरूचरणों में नित गुण गावे ऋद्धि-सिद्ध समृद्धि पावे राजस्थान की विरल धरा पर भरतपुर नगरी श्रेयस्कर ऋषभदास केशरदेवी के पुत्र सलीने रत्नराजथे महिमा जिनकी वर्णी न जावे सरस्वती के पुत्र कहावे उपकारी गुरूदेव हमारे संघ चतुर्विध के रखवाले चारित्र योग उदयपुर आया प्रमोद सूरि गुरु हस्त धराया अतिशय धारी तेज दिपंता पुण्य प्रभावक जय - जयवंता ध्यान साधना जिनकी भारी योग सिद्धि भी उनकी न्यारी चामुंडवन की अटवी माहे हिंसक शेर भी शीष नमावे रत्नत्रयी का ज्ञान कराया तत्वनयी सबको समझाया निस्तुतिक उद्धार कराया पुण्योदय से सद्गुरुपाया S tatessonily www.jainelibrary.org
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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