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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ संदर्भ 1. दे, चारित्रकोश (चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा, दिल्ली प्रकाशन 1983) पृ. 101 2. दे. महाभारत शल्यपर्व अ. 53, यशस्तिलकचम्पू 98/7 अ. 6 का. 20 3. वामनपुराण 23/5 4. शतपुत्र्यामभूवन नाभिसूनोः सूनुः कुरुनृपः । विविधतीर्थकल्प, (जिनप्रभसूरिविरचितम्, शांतिनिकेतन, 1934) पृ. 94 5. आदिपुराण 16/258 6. कुरुक्षेत्रभिति ख्यातं राष्ट्रमेतत्तदाख्यया । कुरोःपुत्रोऽभवद् हस्ती तदुपज्ञमिदं पुरम् । हस्तिनापुरभित्याहुरनेकाश्चर्यसेवधिम् ।। विपिष्ट तीर्थकल्प, पृ. 94 कुरुनरिंदस्स पुत्तो हत्थी नाम सयाहुत्था । तेण हस्थिणा उरंनिवेसिअं । तत्थभागीरहीमहानई पवित वारिपूरा परिवहइ । वही पृ. 27 7. दे. आदिपुराण (जिनसेन) 20/100 8. वृहत्कल्पभाष्य 1/3283 वृति, 1/3275-3289 तथा पार हर धम्मकहा 1/8 9. आदिपुराण 16/53 10. स्थानांगसूत्र 6 तथा दे. पाइअसधमहण्णवो, पृ.321 11. भगवतीसूत्र आ.9, स्थानांगसूत्र 9/691, हरिवंश 10/1053-54 12. दे. दीघनिकाय अट्ठकथा-सुमंगलविलासिनी, भा.2, पृ. 178 तथा मज्झिमनिकाय 2/4/2 13. दे. मज्झिमनिकाय अट्ठकथा-पपञ्चसूदनी भा. 2, पृ. 178 तथा अश्रुतर निकाय अट्ठकथा भा. 1, पृ. 264 14. दे. दीद्यतिकाय अट्ठकथा सुमंगलविलासिनी, भा. 2, पृ 178 15. महाभारत आदिपर्व अध्याय 9/37-40, 43 16, वही, कर्ण पर्व तथा डिक्सनरी आवं पालि प्रापर नेम्स (डॉ. मललशेखर) भा. 2, पृ. 494 कुरुपंचाल, शाल्वभत्स्य, चेदि शूरसेन, नैमिष मागध, कोसल काशी, अंगकलिंग तथा गान्धारक भद्रक ये चौदह जनपद थे । 17. अंगनं, मगधानं, कासीनं, कोसलानं, वज्जीनं, मल्लानं चेतीनं, वसानं, कुरूनं, पञ्चालानं, मच्छानं, सूरसेनानं, अस्सकानं, अवन्तीनं, गन्धारानं, कम्बोजानं । अंगुत्तरनिकाय भा. 4 (अट्ठकनिपात) तथा दे. महावस्तु, भा. / पृ. 34 18. दे. भगवतीसूत्र (नाम अपर व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र) 15 तथा आचार्य तुलसी - उत्तराध्ययन सूत्रः एक अध्ययन 19. दे. मज्झिमनिकाय अट्ठकथा भा. 2 पृ. 722 तथा मि. बुद्धचरित्र 21/16, इसी थुल्लकोहित निगम में स्थविर रट्टपाल का जन्म एवं बौद्धदीक्षा हुयी थी । एक बार स्थविर रट्टपाल अपनी जन्म एवं बौद्ध दीक्षा हुयी थी । एक बार स्थविर रट्ठपाल अपनी जन्मभूमि थुल्लकोट्ठित में आये थे तब यहां के महाराज कौरव्य से मिले थे जिनकी उस समय आयु अस्सी वर्ष की थी । विशेष के लिए दे. मज्झिमनिकाय रट्टपालसुत्त तथा थेरगाथा, गाथा 769-931 । 20. कम्मासदम्म का संस्कृत रूप कल्मासदम्म होता है । बुद्धघोष के अनुसार कल्भाषापाद के दानव था जिसका दमन सुतसोम बोधि सत्व ने उक्त स्थान पर किया था जिस कारण इसका नाम कम्मासदम्म (कल्माषदम्म) पड़ गया । महाभारत के अनुसार कल्मासपाद इक्षवाकुवंशी राजा था । नारदपुराण में भीआता है कि इक्षवाकुवंशी राजा सुवाद का पुत्र मित्रसह ही था जिसने अपने दुष्कर्मों के परिणाम स्वरूप राक्षसी वृत्ति धारण करने पर कल्माषपाद नाम पाया था । रघुका एक पुत्र भी कल्माषपाद हुआ है। इसके लिए देखिए वाल्मीकि रामायण । कम्मादम्म को कम्मासधम्म पद भी मिलता है । यहां धर्म का अर्थ है - नैतिक मर्यादा अथवा नैतिक विधान, जिसमें कल्माषपाद (दैत्य) उत्पन्न अथवा दीक्षित हुआ उसे कम्मासधम्म कहते हैं- कुरूरहवासीनं किर कुस्वत्तधम्मो । तस्सिं कम्मासो जातो, तस्मा तं ठानं कमसोएत्थ धम्मो जातो हि कम्मासधम्मति कुच्वति । दे. सुमंगलविलासिनी, भा. 2 पृ. 178-179 वर्तमान में कुरूक्षेत्र के निकटवर्ती कुभोदा ग्राम में कल्मावपाद (दैत्य) का निर्मित मंदिर आज भी देखा जा सकता है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 104हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Jain dreatiseme
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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