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________________ का क्रमशः आराधन किया जाता है । अन्त में क्षमावाणी अर्थात् एक-दूसरे से विगत में बन पड़े अपराधों के प्रति क्षमायाचना करते-कराते हैं । व्रत-विधान, पूजन आरती करके भक्ति भावना पूर्वक उस पर्व को सम्पन्न किया जाता है । उसे दशलक्षणी पर्व भी कहते हैं। यहां यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है पर भाद्रपद में ही उनकी आराधना की जाती हैं । संवत्सरी : महापर्व का आठवां पूर्णाहुति दिवस है। संवत्सरी । इस अवसर पर मनुष्य सहज भाव से अपनी भूलों पर पश्चाताप करता हुआ दूसरों से क्षमायाचना करता है। मन में भरा वैरभाव मिटाकर प्रसन्नता पूर्वक अपूर्व आनन्द का अनुभव करता है। तन की शुद्धि, मन की शुद्धि, प्रतिक्रमण आलोयणा अर्थात् मन की गांठों का खुलना तथा क्षमापना इस पर्व के प्रमुख अंग हैं। इसी को कुछ जैन क्षमावाणी दिवस के रूप में मनाते हैं। परम्पर में क्षमा याचना करते हैं। संवत्सरी सचमुच आत्मा की दीवाली हैं । गौतम प्रतिपदा : दीपावली के पश्चात् कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा नववर्ष का शुभ दिन है। इस दिन इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । दीपावली के पश्चात् गौतम अर्थात् गणेशजी के नाम का स्मरण किया जाता हैं । गौतम अक्षय लब्धि के भण्डार थे । सर्व प्रकार के विघ्न विनाशक, अक्षय लब्धि के निधान गौतम स्वामी को नमस्कार किया जाता है । श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ । प्रतिपदा का अर्थ है प्रत्येक पद । हर कदम पर गौतम की भांति संचेत रहना, विनम्र होना, गुण गरिमा से सम्पन्न होना, तथा सुख और समृद्धि की प्राप्ति होना, वस्तुतः गौतम प्रतिपदा का सन्देश है। ज्ञान पंचमी : ज्ञान पंचमी के मूल में भाई दौज का माहात्म्य अन्तर्भुक्त है। कहते है भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् बड़े भाई राजा नन्दीवर्धन शोकमग्न, बिना खाये पिये उदास बैठे रहते हैं तब उनकी बहिन सुदर्शना अपने भाई के घर आई और अपने हाथ से भाई को खिलाया पिलाया । कहते हैं इस अवसर पर ग्रंथ / शास्त्र लेखन का प्रयास किया गया । श्रुत सेवा ने जिन शासन की गरिमा और महिमा को आज तक अक्षुण्ण रखा है। श्रुत आराधना से प्राणी ज्ञानी बनता है। क्लेशों तथा कष्टों से विमुक्त होता है । इस अवसर पर जिनवाणी की आराधना सेवा और निम्न शुभ संकल्प लेना चाहिये । 1. ज्ञान के साधन शास्त्र, ग्रंथ तथा ज्ञानदाता गुरु के प्रति आदर भाव रखना । ज्ञान प्राप्त्यर्थ विनय शील बनना तथा जिज्ञासु होकर हर अच्छी और सच्ची बात को ग्रहण करना । ज्ञान प्रसंग और प्रचार में अपने पुरुषार्थ तथा आर्थिक सहयोग का दान करना । इस पर्व की आराधना करने से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयारम्भ होता है । अन्तर में ज्ञान का प्रकाश हमारे चारित्र में प्रकट होता है जीवन को ज्ञान से आलोकित करना ही सबसे बडी ज्ञान पूजा हैं । 2. 3. मौन एकादशी : मौन मन अन्तरंग का तप है। यह वचन का भी तप है मौन युक्त उपवास होने से मन, वचन, काया तीनों योगों से तप की आराधना हो जाती हैं। मन का तप है इन्द्रिय संयम तथा उपवास बारसी का तप है मौन और जप तथा मन का तप है ध्यान / एकाग्रता । इन तीनों का मिलन है मौन एकादशी व्रत । हेमेजर ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 96 हेमेउच ज्योति मेजर ज्योति ersonal
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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