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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ 4 वंदनीय कौन है? मुनि पुष्पेन्द्र विजय आम्र वृक्ष को मनमोहक शीतल छाया में बैठकर अनुभवी गुरुदेव ने अपने शिष्यों से प्रश्न किया कि, हे आयुष्मन् शिष्यो! बताओ इस जगत् में सबका स्नेह कौन प्राप्त कर सकता है ? एक शिष्य अपने स्थान से उठकर विनम्र शब्दों में हाथ जोड़कर बोला "गुरुदेव ! सहनशील मानव सबका स्नेह प्राप्त कर सकता है ।" गुरुजी ने कहा - "उत्तम – उत्तम ! तुम बैठो ।” पुनः गंभीर मुद्रा धारण करते हुए उन्होंने पूछा - "बताओ कौन लोकप्रिय बन सकता है ?" अब की बार ज्ञानचंद अपने स्थान से उठा एवं विनयपूर्वक बोला, जो सेवा करता है वह लोकप्रिय बन सकता है । आज गुरुजी प्रसन्न मुद्रा में थे । अपने शिष्यों को संसुस्कारित करने की दृष्टि से नैतिक प्रश्न किये जा रहे थे । शिष्यगणों को भी आंनद आ रहा था। गुरुजी ने अगला प्रश्न किया-बताओ सबसे चतुर व्यक्ति कौन कहलाता है ? एक शिष्य उठा और बोला 'धनवान' व्यक्ति सबसे चतुर होता है, यह उत्तर सुनकर गुरुजी ने कहा गलत । सब शिष्य उस शिष्य की हंसी उड़ाने लगे । वातावरण एकाएक बदल गया । गुरुजी ने सबको संबोधित करते हुए कहा, कि तुम सबने अपने भाई की खिल्ली उड़ाकर अपराध किया है । शान्त रहकर तुम लोगों को भी विचार करना था, परन्तु तुम सबने गलत उत्तर देने के लिए धनचंद की ओर देखकर उपहास किया, यह गलत पद्धति है। मेरा मन तुम सबके प्रति असन्तुष्ट हुआ है । यह सुनकर सब शिष्यगण एक साथ उठे एवं अपने अपराध के लिए सबने गुरुजी से क्षमा याचना की। सब शिष्यों का यह उत्तम व्यवहार देखकर पुनः गुरुजी प्रसन्न होते हुए बोले बैठो – बैठो ! बस, तुम लोगों ने अपनी-अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी है अतः क्षमा मांगना एवं क्षमा देना भी 'मानवता' है । वातावरण पुनः पूर्ववत् बन गया था । कटु प्रसंग मधुर क्षणों में परिवर्तित हो गया था । गुरुजी ने पुनः वही प्रश्न दोहराया कि सबसे चतुर व्यक्ति कौन है ? अब की बार फूलचंद खड़ा हुआ एवं बोला जो व्यक्ति ‘समयज्ञ' होता है वही सबसे चतुर व्यक्ति होता है । गुरुजी ने सकारात्मक ढंग से सिर हिलाकर स्वीकृति प्रदान की । इस उत्तर से सब कोई संतुष्ट हुए । प्राकृतिक वातावरण अनुकूल था । शोरगुल जहाँ अधिक होता है वहां ज्ञानार्जन भी नहीं हो सकता है । गुरुजी ने कहा अब मेरा अंतिम प्रश्न है जिसका प्रत्युत्तर सोच समझकर देना । प्रश्न है जगत् में कौन वंदनीय है? प्रश्न जटिल था, सारे शिष्य मौन बैठे रहे । किसी ने उत्तर देने का साहस भी नहीं किया । सब सोच जरूर रहे थे किंतु कुछ समझ में नहीं आ रहा था । गुरुजी ने ऐसी स्थिति देखकर सबको स्नेह से संबोधित करते हुए कहा कि प्रिय आयुष्मन् ! शिष्यो ! जिस व्यक्ति का आचरण अर्थात् शील संस्कार श्रेष्ठ होता है, जो व्यक्ति चरित्रवान् होता है वही जगत् में वंदनीय है । चरित्रवान् को वंदना करने से कर्म भी करते हैं । तथा वंदनकर्ता को भी जीवन निर्मलता की शिक्षा मिलती है, साथ ही जीवन निर्माण की दिशा में नैतिक बल प्राप्त होता है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 8 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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