SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ । में आत्मवाद का उपदेश दिया। इसी उपदेश को आचार्य केशी ने अनुभूति-पुष्ट करने के बदले तर्क-पुष्ट किया और दुराग्रह एवं एकांतवाद को छोड़ने का आग्रह किया। इस संवाद में ज्ञान के पांच प्रकारों का भी वर्णन है- उनके पथक आत्मवाद से संबंधित आठ तर्क हैं जो निम्न हैं - (1) परलोक (नरक एवं देवलोक) गत संबंधी चार कारणों से मृत्युलोक में तत्काल नहीं आ सकते (स्थानांग, 4) अतः प्रतिबोध नहीं दे सकते। (2) आत्मा वायु के समान अप्रतिहत गति वाला है। (शून्य में वायु गति नहीं करती)। (3) मन्दबुद्धि वालों के लिए आत्मवाद-जैसा सूक्ष्म विषय बोधगम्य नहीं है (ज्ञानावरण कम)। (4) आत्मा में हवा के समान भार नहीं होता यह अगुरु लघु है। (5) शरीरधारी जीव में कर्मोदय से शक्ति-भिन्नता व्यक्त होती है। (6) आत्मा वायु के समान अदृश्य है, सूक्ष्म है यह अमूर्त है। (7) आत्मा प्रदेशों में संहार विसर्पण की योग्यता है। वर्तमान युग में यहाँ वायु और अग्नि तप्त लोहे के दृष्टांत भौतिक (तैजस-कार्मण शरीरी) जीव के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं, अमूर्त आत्म तत्व को नहीं (पर उपकरण और प्रयोग विहिन युग में लौकिक उदाहरणों द्वारा अमूर्त तत्व को सिद्ध करने की कला अनूठी ही कहलायेगी)। यह मनोवैज्ञानिक भी है इसीलिये राजा-प्रदेशी केशी का अनुयायी बन गया। लगता है, यह संवाद गणधर गौतम से भेंट के पूर्व का है। क्योंकि केशी-गौतम संवाद में तो वे महावीर-संघ में दीक्षित हो गये थे। निरयावलियाओ : सोमिल ब्राह्मण और पंच अणुव्रतः वाराणसी के सोमिल ब्राह्मण ने पार्श्व के उपदेश सुनकर 12 व्रतों की दीक्षा ली। बाद में अनेक प्रकार के साधुओं के कारण अनेक बार उनका अतिक्रमण किया और मिथ्यात्वी हो गया। एक हितकारी देव के बारबार स्मरण कराने पर उसने पुनः 12 व्रत धारण किये। व्रत-तप-उपवास किये वह मर कर देव हुआ। साध्वी भूता की कथा का भी यही रूप है पर उसमें उपदेश नहीं है। फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि सोमिल का यह कथानक पार्श्वकालीन नहीं होना चाहिये क्योंकि उसमें चातुर्याम के बदले पंचयाम का उल्लेख है। साथ ही भगवती सूत्र 18.10 में भी सोमिल ब्राह्मण का कथानक है और उसमें भी वे ही प्रश्न है जो निरयावलियाओं में हैं पर उसके मिथ्यात्वी होकर पुनः दीक्षित होने की बात नहीं है। साथ ही यह कथानक वाणिज्य ग्राम से संबंधित है। इसलिये दोनों कथानकों के सोमिल ब्राह्मण अलग-अलग व्यक्ति होना चाहिये पर पंचयाम की संगति कैसे बैठेगी? उपसंहार: उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पार्श्व के सैद्धांतिक उपदेशों के अंतर्गत (1) पंचास्तिकाय (2) कर्मवाद और उसके विविध आयाम (3) अनंतसुखी मोक्ष (4) शाश्वत पर परिमित एवं परिवर्तनशील लोक (5) जीव-शरीर-भिन्नता के माध्यम से स्वतंत्र आत्मवाद (6) जीव के अमूर्त्तत्व, सूक्षत्व, अदृश्यत्व, ऊर्ध्वगामित्व, कर्तृत्व और भोगतृत्व (7) चार गतियां और पांच ज्ञानः रागावस्था में गतिबंध (8) सत्कार्यवाद (9) चातुर्याम धर्म/सामायिक धर्म (10) शांतर-उत्तर वस्त्र मुक्तित्व (11) हिंसा-अहिंसा का विवेक पर्याय और परिस्थिति पर निर्भर (12) धार्मिक पदों के अर्थ व्यवहार एवं हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति81 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Private
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy