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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ऐसा दोहरा जीवन जीवन मूल्यों से युक्त नहीं कहा जा सकता : इसी प्रकार जो व्यक्ति हिंसापरायण, परम्परा से युक्त हो, उसके परिवार में सभी लोग धर्म संप्रदाय के बाह्य क्रियाकाण्डों का पालन करते हैं, मगर उनके जीवन में धर्माचरण न हो, यानि धर्म नीति धर्मयुक्त आजीविका न करते हों, ऐसे लोग जीवन मूल्यों से रहित होते हैं। क्योंकि धर्म के मूलभूत अंगों, अहिंसा, संयम नीति, न्याय, मानवता आदि से वे लोग दूर ही रहते हैं। औरंगजेब, कोणिक आदि इस तरह के ज्वलंत उदाहरण है। ऐसे लोग साप्रदायिक कट्टर पंथी या संप्रदाय मोह, पंथ मोह, मत मोह आदि मूढ व्यक्तियों द्वारा भले ही धार्मिक कहे जाते हों, सम्माननीय भले ही हों अंदर से वे खोखले ही होते है। उनका जीवन नीति न्याय, अहिंसादि धर्माचरण, मानवता से रहित हो तो उनका जीवन शुद्ध धर्मांगों से रहित होने से जीवन मूल्यों से युक्त नहीं कहा जा सकता। जीवन मूल्य कहां सुरक्षित, कहां नष्ट भ्रष्ट १ कई दफा कतिपय व्यक्तियों का जीवन धर्म मूल्यों से रहित होता है परन्तु कई बार जीवन में ऐसा परिवर्तन आता है कि वे पापात्मा से धर्मात्मा बन जाते है इतिहास में ऐसे चोर, डाकू, वेश्या, हत्यारे आदि लोगों के जीवन का वर्णन आता है कि प्रारम्भ में वे ऐसे अनेक पापों में मग्न थे, किन्तु जब किसी निमित्त से प्रेरणा पाकर वे बड़े धर्मात्मा बन गये। कठोर परीक्षा में भी वे उत्तीर्ण हुए औरंगजेब बादशाह के शासनकाल में रामदुलारी नाम की एक वेश्या थी। एक बार उसके एक पुत्र हुआ। शिशु के लालन-पालन में वह इस प्रकार खो गई कि अपने धंधे की ओर ध्यान देना बंद कर दिया। उसकी मालकिन अन्ना ने आय बंद होती देखकर एक दिन रामदुलारी की अनुपस्थिति में उसके बच्चे को तिमंजिले मकान से नीचे फेंक दिया। रामदुलारी के मन पर बच्चे की मौत की इतनी चोट पहुंची कि वह पागल हो गई। उसको संसार से विरक्ति हो गई। एक त्यागी संत के उपदेश से वह ब्रह्मचारिणी बनकर भगवद् भक्ति में लीन रहने लगी वेश्या जीवन को बिलकुल तिलांजली दे दी औरंगजेब उसके रूप पर मुग्ध होकर उसे अपनी बेगम बनने के लिए बहुत प्रलोभन भी दिये भय भी दिखाया। मगर वह बिलकुल विचलित नहीं हुई। औरंगजेब ने उसकी भक्ति के मार्ग में बहुत रोड़े अटकाये। ज्यादती की। मगर आखिर उसने भगवान की भक्ति में तल्लीन होकर शील की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिये। रामदुलारी की मृत देह देखकर औरंगजेब को बहुत दुख हुआ। वह अपनी कामवासना को धिक्कारने लगा। इस प्रकार एक जीवन मूल्य हीन वेश्या ने एक दिन जीवन मूल्य की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये । T I निष्कर्ष है कि जहां शुद्ध धर्म है, वहां जीवन मूल्य सुरक्षित है और जहां शुद्ध धर्म जीवन में नहीं है वहां जीवन मूल्य असुरक्षित है, नष्टभ्रष्ट है। जीवन मूल्यों का हास : तेजी से होता जा रहा है आज हम जगत के निम्न वर्गीय और मध्यम वर्गीय लोगों से भी अधिक प्रायः उच्चवर्गीय लोगों, जिनमें बड़े बड़े धनपतियों, शासकों, शासनाधिकारियों, उद्योगपतियों, तथा उच्चपदाधिकारियों, यहां तक की धर्मधुरंधर कहलाने वाले कतिपय गृहस्थों तथा तथाकथित साधु वर्ग में भी शुद्ध धर्म की मर्यादाओं, सेवा, क्षमा, दया, न्याय, नीति, एवं संवर निर्जरा रूप या सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तपोमय धर्म का लोप होता जा रहा है। पाश्चात्य सभ्यता के तेजी से फैलते हुए प्रवाह में बहने लगे है। धर्म और अध्यात्म की जीवन में धज्जियां उड़ाई जा रही है। कहने को तो कई लोग उपासनामय धर्म का पालन करते हैं, किन्तु उनके व्यवसाय में समाज व्यवहार में राजनैतिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में अहिंसा सत्य ईमानदारी न्याय नीति आदि धर्म का या शुद्ध निः स्वार्थ संवर निर्जरा रूप आचरणात्मक धर्म का गला घोंट दिया जाता है। तब भला उस जीवन को धर्म मूलक जीवन मूल्यों से युक्त या सुरक्षित कैसे कहा जा सकता है। ग्रंथ यह तो सुविदित है कि धर्म जहां केवल भाषण की या तत्वज्ञान बघारने की वस्तु रह जाती है अथवा जहां वह साप्रदायिकता के कटघरे में बंद हो जाता है, वहां जीवन में वह उतरता नहीं है, जीवन मूल्यों से रहित हो जाता है। हेमेजर ज्योति ज्योति 36 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति ainelib
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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