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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था जीवन कब धर्म मूल्यों से रहित - कंब सहित? कोई कह सकता है कि यों तो सज्जन पुरुषों के द्वारा अपने जीवन में जागृत होने के कारण कई बार उसका जीवन, जीवन मूल्य से रहित, धर्म से भ्रष्ट बन जाता है। इसके विपरीत कई बार कई लोग समाज और परिवार के त्रास के कारण चोरी, डकैती, व्यभिचार, मद्यपान आदि व्यसनों के चक्कर में फंस कर जीवन मूल्य को खो देते है, परन्तु जीवन का कोई क्षण ऐसा आता है कि या तो ठोकर खाने के बाद या किसी महान आत्मा, महापुरुष या संत की प्रेरणा से एकदम बदल जाता है। वह चोर से साहुकार, डाकू से संत, कुव्यसनों का त्याग करके पापात्मा से धर्मात्मा बन जाता है। वाल्मिकी लुटेरा था किन्तु एक महात्मा की वाणी श्रवण करके सहसा ऋषि बन गया। धर्म से ओत प्रोत होने के कारण पहले का बुझा हुआ जीवन, जीवन मूल्य से युक्त धर्ममय बन गया। जीवन मूल्यों की सुरक्षा और वृद्धि में मूलभूत सद्धर्म अवश्य जुड़ा रहा : _कई व्यक्ति रिक्शा चलाकर या अन्य महनत मजदूरी या कहीं सर्विस करके नीति न्याय पूर्वक जीवन निर्वाह करते हैं, ऐसे लोग अपने जीवन में जीवन मूल्य ही सुरक्षित नहीं रखते बल्कि समय आने पर ईमानदारी, सत्यता और संवर निर्जरा रूप धर्म पर अटल रहकर जीवन मूल्यों की वृद्धि भी करते हैं। राजा रंतिदेव की पौराणिक कथा प्रसिद्ध है जिन्होंने दुष्काल पीड़ित प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणों को खतरे में डालकर 49 दिनों की तपस्या की। जिसके प्रभाव से दुष्काल मिटकर सुकाल में परिणत हो गया। एक राजा का मंत्री जैनधर्मी वीतराग प्रभु का उपासक तथा दृढ़ धर्मी था। वह कभी ऐसा काम नहीं करता था, जिससे किसी का अहित हो। किन्तु राजा की धर्म पर जरा भी श्रद्धा नहीं थी। वह मंत्री के धर्मनिष्ठ जीवन को पसंद नहीं करता था। मगर मंत्री अपने पद का दायित्व पूर्ण रूप से निभाता था। इसलिए वह अपने कार्यों और गुणों से राजा को प्रिय भी था। मंत्री अपनी धर्माराधना में कभी चूकते नहीं थे। अन्य राज्याधिकारी मंत्री की प्रशंसा सुनकर ईर्ष्या से जलते थे। एक बार चौमासी पक्खी का दिन था, गांव में गुरुदेव भी विराजमान थे। अतः मंत्री ने उस दिन धर्माराधना हेतु पौषध व्रत ग्रहण कर लिया। संयोगवश राजा को उस दिन किसी विशिष्ट कार्य के लिए मंत्री के परामर्श की आवश्यकता पड़ी, पर वे उस दिन दरबार में हाजिर न थे, और राजसेवकों द्वारा बुलाये जाने पर भी वे पौषध में होने के कारण उपस्थित न हो सके, इस कारण राजा ने कठोर आदेश भेजा कि या तो मंत्री राज दरबार में हाजिर हो, या मंत्री पद की मुद्रा वापस लौटा दे। मंत्री के धर्मनिष्ठ जीवन मूल्य की सुरक्षा का प्रश्न था। जिसके रगरग में धर्म के प्रति दृढ़ निष्ठा होती है वह ऐसे संकट काल में भी धर्म पर स्थिर रह सकता है। अतः मंत्री ने आगंतुक राज सेवक को अपनी मंत्री पद की मुद्रा सौंप दी। मंत्री पद की मुद्रा राजा के पास पहुंचने पर राजा ने सोचा - 'मंत्री अपनी धर्मनिष्ठा पर दृढ़ है। धर्म के प्रभाव से षड्यंत्रकारी राज्याधिकारियों ने उसे मारने का जाल रचा, किन्तु वह विफल हो गया। किन्तु मैं व्यर्थ ही ऐसे वफादार, गुणी, धर्मनिष्ठ मंत्री के प्रति मुझे रोषद्वेश न करके उससे क्षमायाचना करनी चाहिए। यह सोचकर राजा मंत्री के पास माफी मांगने के लिए पहुंचा। राजा को आते देख मंत्री ने मन में विचार किया -'हो न हो, राजा मुझे मारने के लिए आ रहा है, उस समय धर्मनिष्ठ श्रावक ने विचार किया – हे जीव ! तुने इससे पूर्व अनेक शरीर धारण किये और छोड़े होगें, लेकिन धर्म के लिए या धर्म में लीन रहकर एक बार भी शरीर नहीं छोड़ा होगा। अतः डरने की जरुरत नहीं। यह तो तेरी धर्म में दृढ़ता की कसौटी का समय है। राजा को शत्रु न मानकर मित्र मान। वह तो निमित्त मात्र है। कल्याण मित्र समान संसार सागर पार कराने में सहायक को मैं शत्रु क्यों मानूं? चाहे जो हो इस समय मुझे समता धर्म में स्थिर रहना चाहिए। इतने में ही राजा मंत्री के पास पहुंच गये। क्षमायाचना करते हुए बोले - 'मंत्री वर ! आप अपनी धर्मनिष्ठा के प्रभाव से बच गये, मैं भी बच गया और सुरक्षित रहा। अतः यह मंत्री-मुद्रा समर्पित है इसे स्वीकार कीजिए। इस प्रकार राजा जो पहले धर्म आराधना तथा धर्मश्रद्धा से विहीन होकर जीवन मूल्यों से रहित पराजय का जीवन जी रहा था, वह धर्मनिष्ठ श्रावक के निमित्त से धर्म श्रद्धा से युक्त होकर जीवन मूल्यों से युक्त बन गया, उधर धर्मनिष्ठ मंत्री ने धर्मसंकट आने पर भी जीवन मूल्यों की रक्षा की। हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 35 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति For Private &
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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