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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ मुख कोश : मनुष्य जब श्वास लेता है तो शुद्ध वायु उसके अंदर जाती है और अशुद्ध वायु बाहर निकलती है। बाहर निकलने वाली गर्म उच्चवास अशुद्ध होती है व दुर्गन्ध युक्त भी होती है। यह अशुद्ध और दुर्गंध युक्त श्वास जब भगवान की प्रतिमा को स्पर्श करती है तो आशातना होती है। इससे बचने के लिए आठ तहाँ वाले वस्त्र से मुख और नाक को पूर्णतः ढंक लेना चाहिए जिससे बाहर निकलती श्वास प्रभु की प्रतिमा का स्पर्श नहीं कर सके। सावधानियाँ : I 1. छोटे रंगीन रूमालों का उपयोग मुखकोश के लिए नहीं करना चाहिए ये छोटे रूमाल नाक और मुख की श्वास रोकने में समर्थ नहीं होते। इसलिए मुख कोश दुपट्टे का बनाना चाहिए। यदि दुपट्टे से मुख बांधना असुविधाजनक लगता हो तो कोई बड़ा वस्त्र खण्ड उपयोग में लाना चाहिए । मुखकोश इस प्रकार बांधना चाहिए कि जिससे श्वास लेने में कठिनाई न आये। 2. 3. कपाल तिलक : जिनाज्ञा को प्रमुख मानने वाला श्रावक जब मंदिर जाता है और पूजा करने के पूर्व वह अपने कपाल पर तिलक लगाता है। उसके द्वारा वह यह भाव प्रकट करता है कि हे प्रभु! मैं आपकी उपासना के लिए उपस्थित हुआ हूँ । यह उपासना आपकी आज्ञानुसार विधि पूर्वक करूँगा। मेरी इच्छा को इसमें कोई स्थान नहीं है। मंदिर से घर जाऊँगा तब भी आपकी आज्ञा का तिलक धारण कर अपने सांसारिक कार्य में संलग्न होऊँगा । आपकी आज्ञा के अतिरिक्त इस पाप पूर्ण संसार में डूब मरने की मेरी लेश मात्र भी भावना नहीं है। मैं जिनेश्वर देव का सेवक हूँ। इस प्रकार की घोषणा का प्रतीक है ललाट पर लगाया गया तिलक और ऐसी घोषणा करके ही तिलक लगाना चाहिए। तिलक प्रभु के सामने नहीं लगाना चाहिए। इसके लिए अलग कक्ष होता है। वहीं पद्मासन मुद्रा में बैठकर केसर से चंदन मिश्रित दीपक की लौ की भांति तिलक पुरुषों को और चंद्रमा के समान गोल तिलक महिलाओं को लगाना चाहिए। कपाल के तिलक के बाद दोनों कानों के किनारे कंठ हृदय और नाभि पर भी तिलक करना चाहिए। हाथों में जहाँ आभूषण धारण किये जाते है, वहाँ भी तिलक रूप आभूषण बनाकर धारण करना चाहिए। बातें तो और भी कहनी है, बतानी है किंतु यदि सूक्ष्म में उन पर विचार किया जावे तो यह एक लेख न रहकर पुस्तक बन जायेगी। प्रत्येक पूजा की विधि, उसमें रखनेवाली सावधानियाँ आदि अनेक बातें हैं, जिनका सूक्ष्म विवेचन आवश्यक है। जब कभी अवकाश होगा, तब उन पर विस्तार से लिखा जा सकेगा। अभी इतना ही। अंत में एक बात और कहकर अपना कथन समाप्त करता हूँ। जब भी प्रभु दर्शनार्थ मंदिर में प्रवेश करें तब अपने साथ किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री नहीं ले जायें। यहाँ तक कि यदि जेब में सुपारी, लोंग, इलायची जैसी वस्तुऐं भी हों तो उन्हें बाहर ही रख दें। साथ ही यदि मौजे पहन रखें हों तो उन्हें भी खोलकर जावें। आजकल लोग मौजे पहनकर ही प्रभु के दर्शनार्थ चले जाते हैं जो उचित नहीं है। Jain Education international हेमेन्द्र ज्योति हेमेजर ज्योति 8 हमे ज्योति ज्योति What wo
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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