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________________ RA श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ एक दिन किसी दयालु वृद्ध व्यक्ति ने उन दोनों को नगर के धर्मात्मा सेठ धर्मचन्द के पास भेज दिया । दोनों ने नम्रतापूर्वक सेठ को प्रणाम किया और फिर उनको अपनी दुःख कथा सुनाई । सेठ ने दया करके उन दोनों को अपनी विशाल अहाते में बनी जिनिंग फेक्टरी की चौकीदारी करने के लिये रखा लिया और रहने के लिये फेक्टरी क्षेत्र में बने क्वार्टरों में से एक क्वार्टर उन दोनों को दे दिया । सेठ के यहाँ रहते हुये पिता की शिक्षा को ध्यान में रखते थे । धर्मचन्द सेठ ने एक दिन उनमें से एक को कहा – देखो अपने यहाँ पशु बहुत है । तुम इन्हें प्रातःकाल जंगल में चराने ले जाया करो और सन्ध्या के समय वापिस ले आया करो । वह सेठ के आदेशानुसार पशुओं को चराने ले जाता और शाम को ले आता । दोपहर को खाने के लिये उसके साथ रोटी बाँध दी जाती थी । सेठ ने दूसरे भाई से कहा - देखो, तुम्हारा काम यह होगा कि मैं या घर के अन्य सदस्य जो भी काम बतायें उसे प्रसन्नतापूर्वक करना । भोजन भी वहीं कर लिया करना । इस तरह दोनों भाइयों की रहने और खाने पीने की समस्या हल हो गई । इस प्रकार दूसरा भाई भी तन मन से आज्ञा पालन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा । वह प्रसन्नतापूर्वक सबका काम करता था, अतएव घर के सभी लोग उससे प्रसन्न रहने लगे । वह अपने शरीर को शरीर न समझता हुआ, प्रत्येक के प्रत्येक आदेश का तत्काल पालन करता और दौड़-दौड़ कर शीघ्र उसे बुद्धिमता के साथ पूरा करता था । इस तरह एक भाई दिन में पशु, दूसरा भाई घर के सदस्यों के आदेश का पालन करता और रात दोनों भाई फेक्टरी के सामान की निगरानी करते । धर्मचन्द सेठ बड़ा धर्मात्मा था । उसका हृदय करुणा से ओतप्रोत रहता, अनीति पूर्वक व्यापार नहीं करता, दीन दुखियों की सहायता करता और अपने कर्तव्यों का पालन करता था । उस नगर में सन्त महात्माओं का आवागमन लगा रहता था । सेठ प्रतिदिन उनके प्रवचन सुनने जाया करता था । एक दिन वह सेठ उन दोनों बालकों को भी अपने साथ ले गया । दोनों संत प्रवर के उपदेश का मनन करते रहे । दोनों भाइयों ने आपस में कहा -"संत प्रवर का उपदेश तो आत्मा के लिये कितना कल्याणकारी है । हम लोगों को इतना सुन्दर उपदेश पहले कभी सुनने को नहीं मिला । ज्ञात होता है, हम लोगों ने पूर्व जन्म में परमात्मा की भक्ति, तपस्या नहीं की, इसी कारण इस जन्म में इतने दुःख भुगतने पड़ रहे हैं, देखो, जैसे अपने माता-पिता चले गये, उसी प्रकार हम लोग भी चले जायेंगे । इस जीवन का क्या विश्वास है? अभी है और अभी नहीं है । कौन कह सकता है कि यह जीवन कल तक रहेगा भी या नहीं ।" प्रकाश और कैलाश ने विचार किया - "इस जीवन का कोई विश्वास नहीं, किसी भी समय मृत्यु आकर इस जीवन को समाप्त कर सकती है । सेठ ने अपने विश्वसनीय व्यक्ति को उनके गाँव भेजकर उनके व्यवहार, चरित्र और खान-पान की जानकारी मंगाई। ग्रामवासियों को जब यह पता चला कि आगन्तुक मेहनती और ईमानदार किसान के बालकों के रहन सहन चरित्र की जानकारी लेने आया है तो वे बड़े प्रसन्न होकर बोले- "प्रकाश और कैलाश के माता-पिता शुद्ध सात्विक भोजन करते थे । सादा रहन-सहन था । बीड़ी तम्बाकू को स्पर्श नहीं करते थे । वैसे ही उनके लड़के हैं । घर के वातावरण का प्रभाव संतान पर पड़े बिना नहीं रहता ।" आगन्तुक व्यक्ति जानकारी लेकर चला गया, और जाकर सेठ को सारी बातों से अवगत करा दिया । सुनकर सेठ भी बड़ा प्रसन्न हुआ । उसके दो पुत्रियां थी, दोनों सुशील और गृहस्थी के कामकाज में दक्ष । दोनों का चारित्रिक गुण प्रशंसनीय था । एक दिन सेठ ने भोजनोपरान्त अपने कमरे में पत्नी को बुलाकर सलाह-मशविरा किया और कहा- तुम्हारा क्या विचार है? यदि दोनों पुत्रियों का विवाह दोनों भाइयों के साथ कर दिया जाए तो तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है। पत्नी ने अपनी सहमति देते हुए कहा- इनसे अच्छे लड़के कहाँ मिलेंगे? सब तरह से योग्य हैं । गाँव से जानकारी भी मंगवाली । पत्नी की सहमति होते ही दोनों लड़को की सहमति लेकर शुभ मुहूर्त में विवाह सम्पन्न हो गया। एक भाई के नाम फेक्ट्ररी कर दी । दूसरे को रहने के लिये सुविधाजनक मकान बनवाकर दुकान खुलवा दी। दोनों भाई अपनी-अपनी पत्नी के साथ सुख से जीवन व्यतीत करने लगे । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 37 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Forpilometale
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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