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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ सेठ ने उस वकील को बुलाया और उसके पैर पकड़कर रोना शुरू कर दिया । वकील के पूछने पर उसने मुकदमे का पूरा वृतान्त कह सुनाया और कहा – आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मेरी लाज बचा लीजिये । वकील ने कहा यह तो स्पष्ट है कि आपके द्वारा ही बच्चे की मृत्यु हुई है । फिर उसके उत्तरदायित्व से कैसे बचा जा सकता है? सेठ ने कहा - आपके लिये यह कठिन काम नहीं है । कानून में अत्यधिक गुन्जाइश होती है और इस बात को आप भलीभांति मुझसे अधिक जानते हैं । आप इस प्रकरण को अपने हाथ में ले लीजिये । वकील ने कहा – मैं अपनी ओर से पूरा प्रयत्न करूँगा और आशा करता हूँ कि आप बच भी जायेंगे, मगर मेरा पारिश्रमिक पांच हजार रुपया होगा । पांच हजार की बात सुनकर सेठ की छाती पर सांप लौट गया, परन्तु मरता क्या न करता, सेठने वकील की मांग स्वीकार कर ली । वकील ने सेठ से कहा- सेठजी आपके बचने का एक ही उपाय है और वह यह कि जब न्यायालय में बहस हो रही हो, आप एक भी शब्द न बोलें । फिर सारे प्रकरण को मैं संभाल लूंगा | सेठ ने वकील के परामर्श को स्वीकार किया । दूसरे दिन पेशी हुई । वृद्धा और सेठ भी आकर खड़े हुये। दर्शकों की अपार भीड़ थी । न्यायाधीश ने सेठ से पूछा- क्या तुम्हारे घोड़ों से इसके बालक की मृत्यु हुई है? परन्तु अभिभाषक की सीख के अनुसार सेठ ने कोई उत्तर नहीं दिया, कई बार प्रश्न करने पर भी जब सेठ चुप ही रहा तो वृद्धा से नहीं रहा गया। वह तुनक कर बोली - जज साहब ! आज तो यह गूंगा बनने का ढोंग कर रहा है, पर उस दिन जोर से चिल्ला रहा था - हटो-हटो उसी समय सेठ के वकील ने कहा - महोदय आप इन शब्दों को लिख लीजिये । न्यायाधीश ने वे शब्द लिख लिये और अन्त में उन्हीं के आधार पर सेठ के विरूद्ध अभियोग समाप्त कर दिया गया। सेठ को ससम्मान बरी कर दिया गया । मेहनती किसान, किसी गाँव में एक किसान रहता था । उसके दो पुत्र थे । एक का नाम प्रकाश और दूसरे का कैलाश था। किसान बड़ा मेहनती था । इसलिये थोड़ी सी भूमि में भी इतनी फसल उत्पन्न करता कि वर्ष भर आराम से खाते उसकी पत्नी व दोनों लड़के भी उसे खेती के काम में सहायता करते । किसान को किसी प्रकार का व्यसन नहीं था, न वह बीड़ी पीता और न ही चिलम | सुबह शाम दाल रोटी खाकर सन्तुष्ट होता था । रात को दोनों पुत्रों व पत्नी को पास बैठा कर उन्हें घण्टे दो घण्टे ज्ञान की बातें कहता था । और यह भी कहता था कि जीवन में अनीति से कमाया धन कभी घर में टिकता नहीं है । ईमानदारी और मेहनत से कमाये धन में बरकत होती है । मेहनत की सूखी रोटी मीठी लगती है । जहाँ तक हो सके कुसंगति से बचना और जीवन में ध्येय लेकर चलना । किसी भी वस्तु के व्यापार में हानि होने पर अथवा फसलें नष्ट होने पर हिम्मत मत हारना, धैर्य रखना । पराये धन पर कभी दृष्टि मत डालना, चोरी मत करना । मेरी इन बातों पर ध्यान देकर चलोगे तो जीवन में कभी दुःख नहीं उठाओगे सदा सुखी रहोगे ।। आयु पूर्ण होने पर एक दिन अचानक माता-पिता की मृत्यु हो गई । दोनों बालकों ने सूझबूझ और साहस से काम लेते हुये माता-पिता का अन्तिम क्रिया कर्म बड़े ठाट से किया । ब्राह्मणों को भोजन कराया । माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् दोनों भाइयों का मन उचट गया, किसी काम में मन नहीं लगता था । अतः मकान और खेत बेच कर जीवन निर्वाह के लिये गांव छोड़कर अन्यत्र चल दिए और एक बड़े नगर में जा पहुंचे और एक कमरा किराये पर लेकर रहने लगे । दिन भर नौकरी की तलाश में भटकते और शाम को थके हारे कमरे पर लौट आते । इस तरह दो माह हो गए । पास की जमा पूंजी समाप्त होने को आ रही थी । हेमेन्द्रज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 36 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्य ज्योति C i nelitara
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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