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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ इस अवसर परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में तीर्थ निरन्तर विकास की ओर अग्रसर है। जब यह बात ज्ञात हुई कि पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि म. सा. के जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है तो प्रसन्नता असीम हो गई । पू. आचार्य भगवन अनेक गुणों से सम्पन्न है । वे सेवाभावी, समताभावी है। दया और करुणा का निर्झर उनके हृदय में सतत बहता रहता है । वे सरल, निर्मल हृदयी है । निरभिमानी है। कभी भी अपनी बात दूसरों पर थोपते नहीं है । चाहे छोटा हो चाहे बडा, वे सबकी बात सुनते हैं और आवश्यकतानुसार उसे स्वीकार भी करते हैं । आज ऐसे राष्ट्रसंतश्री के सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करते हुए हम स्वयं गौरव का अनुभव कर रहे हैं पू. आचार्यश्री दीर्घायु हो, स्वस्थ रहते हुए हमें, संघ, समाज को अपना मार्गदर्शन देते रहे, यही शासनदेव से अन्तरमन से प्रार्थना करते हैं । । मानव की मानवता का प्रकाश सत्य, शौर्य, उदारता, संयमितता आदि सद्गुणों से ही होता है। जिस में गुण नहीं, उसमें मानवता नहीं, अन्धकार है। अन्धकार ही मानवता का संहारक है और प्राणीमात्र को यही संसार में ढकेलता है। अतएव प्राणीमात्र को दुर्भावनारूप अंधकार को अपने हृदय से निकाल कर सद्भावनामय प्रकाश उच्चत्तर पर ले जाकर मानवजीवन को सफल बना कर शिवधाम में पहुंचाता है। समस्त ट्रस्टी श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेताम्बर पेढ़ी (ट्रस्ट) श्री मोहनखेड़ा तीर्थ, राजगढ़, जिला धार (म. प्र. ) जिनेश्वर वाणी अनेकान्त है वह संयममार्ग की समर्थक है वह सर्व प्रकारेण तीनों काल में सत्य है और अज्ञानतिमिर की नाशक है। इस में एकान्त दुराग्रह और असत् तर्कवितकों को किंचिन्मात्र भी स्थान नहीं है। जो लोग इस में विपरीत श्रद्धा रखते और संदिग्ध रहते हैं, वे मतिमंद और मिथ्यावासना से ग्रसित हैं। जिस प्रकार सघन मेघ घटाओं ये सूर्यतेज दब नहीं सकता, उसी प्रकार मिथ्याप्रलापों से सत्य आच्छादित नहीं हो सकता। अतः किसी प्रकार का सन्देह न रख कर जिनेश्वर वाणी का आराधन करो, जिस से भवभ्रमण का रोग सर्वथा नष्ट हो जाय। हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 80 श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. हेमेन्द्र ज्योति ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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