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________________ . श्री राष्ट्रसंत शिरामणि भिनंदन था। बात वि.सं. 1995 की है और यह चातुर्मास आपका मोरसीम में ही सम्पन्न हुआ । चातुर्मास काल में तपश्चर्याओं की धूममची रही। अच्छी धर्म प्रभावना हुई । इस चातुर्मास के उपलक्ष्य में श्री मोरसीम हर्ष प्रकाश' नामक पुस्तक का प्रकाशन भी हुआ । थराद चातुर्मास एवं उपधान : वि.सं. 1996 का चातुर्मास आपका थराद मे विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ सम्पन्न हुआ । यही उपधान तप भी आपके सान्निध्य में सम्पन्न हुआ । चातुर्मास सम्पन्न हुआ और मोवड़िओं की विनती स्वीकार कर वहां नव पद ओली जी की आराधना करवाने के लिये आपने स्वीकृति दी साथ ही आपने वहां वैशाख शुक्ला दसमी को प्रतिष्ठा भी सम्पन्न करवाई। कुआ पानी से भर गया : मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. के पावन सान्निध्य में वासणा में प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । यहां एक चमत्कार घटित हुआ । प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर यहां पेयजल का अभाव सा हो गया था । कुए में पानी नहीं के बराबर था। जल तो जीवन है । पानी के अभाव में कोई भी कार्य कर पाना सम्भव नहीं होता है । करें तो क्या करें । वासणा संघ चिंतित था । मुनिराज श्री हर्षविजयजी के सम्मुख बैठे संघ के सदस्य पानी की समस्या पर घुसुर पुसुर कर रहे थे । संघ प्रमुख की मुखमुद्रा पर चिंता की रेखायें खिंची हुई थी । ऐसी स्थिति देखकर मुनिराज ने पूछा-"आप किस बात की चिंता कर रहे हैं ? क्या बात है?" "बावजी ! कुए में पानी समाप्त हो गया है । पानी के बिना क्या होगा? बस यही चिंता है ।" "सब ठीक हो जायेगा । तुम चिंता मत करो ।" वचन सिद्ध मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने फरमाया । इसके पश्चात् मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. सबके साथ उस कुए पर आए । वहां जल देवी का स्मरण किया और कुए के अन्दर पवित्र जल का छिड़काव किया । सबके देखते देखते एक चमत्कार हो गया । कुए के मध्य झरण फूट पड़ी। पानी की धार निकल पड़ी और कुआ पानी से भराने लगा । यह देखकर सब उपस्थित व्यक्ति जय जयकार कर उठे । फिर तो प्रतिष्ठा महोत्सव उत्साहपूर्वक सानन्द सम्पन्न हुआ । वि. सं. 1997 का चातुर्मास थराद में और वि. सं. 1998 का चातुर्मास वासणा में सम्पन्न किया । भीनमाल में दीक्षोत्सव : चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात् आपने भीनमाल की ओर विहार किया । स्मरण रहे कि भीनमाल निवासी श्री थीरपाल धरू ने थीरपुर नगर अर्थात् वर्तमान थराद की स्थापना की थी । इस सम्बन्ध में कहा जाता है - भीनमाल नगर को छोड़ के, पश्चिम गये परमार | संवत एक सौ एक में वस्यो शहर थराद || भीनमाल एक ऐतिहासिक नगर है । यहां जैनधर्म का अच्छा प्रभाव रहा है । इस सम्बन्ध में यहां लिखना कुछ अप्रासंगिक प्रतीत होता है । भीनमाल संघ की विनती को मान देकर आपने वि.सं. 1999 के चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान कर दी । भीनमाल नगर में आपका प्रवेश समारोहपूर्वक हो चुका था । यहीं पर आपके साथ रह रहे वैराग्यमूर्ति श्री पूनमचंद (अथार्त-मेरा) का दीक्षोत्सव आषाढ़ शुक्ला दूज वि.सं. 1999 को सम्पन्न हुआ । इस प्रकार वर्षों से हृदय में जो वैराग्य भाव पल रहे थे वे गुरुदेव पूज्य मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. के करकमलों से भीनमाल में फलीभूत हुए । नवदीक्षित मुनि का नाम रखा गया मुनिश्री हेमेन्द्र विजयजी म. और उन्हें मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. का शिष्य घोषित किया गया । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 22 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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