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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था तीसरे आचार्य : आचार्य श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरीश्वरजी म. के पाट पर मुनिराज श्री दीपविजयजी म. को प्रतिष्ठित कर आचार्यपद से अलंकृत किया और उनका नाम आचार्य श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरि रखा गया । मुनिराज श्री यतीन्द्र विजयजी म. को उपाध्याय पद प्रदान किया गया । हमारे चरित्र नायक मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. को बारह वर्ष तक आचार्यदेव श्रीमद विजय भूपेन्द्र सूरीश्वरजी म. का सान्निध्य मिला । वि.सं. 1991 में अहमदाबाद में हुए मुनि सम्मेलन में आचार्य भगवन के साथ मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. रहे । आचार्य भगवन की आज्ञा से मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. मुनिराज श्री वल्लभविजयजी म. के साथ मन्दसौर पधारे और यहां वैशाख शुक्ला दसमी वि.सं. 1991 को समारोहपूर्वक प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई । इसी बीच आचार्य भगवन की अस्वस्थता के समाचार मिलने पर आप आचार्यश्री की सेवा में पहुंचे और वि. सं. 1991 का वर्षावास आचार्यश्री के साथ ही व्यतीत किया । आचार्यश्री का स्वास्थ्य इन दिनों अस्वस्थ ही बना रहता था । मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. उनकी सेवा में लगे रहते । अंततः काल ने अपना प्रभाव दिखाया और एक दिन आचार्य श्रीमद विजय भूपेन्द्र सूरीश्वरजी म. को ले ही गया । आचार्य श्री के निधन से सर्वत्र शोक की लहर छा गई । इस प्रकार मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. को अपने जीवन काल में तीसरे आचार्यदेव का वियोग सहन करता पड़ा। । । चौथे आचार्य : आचार्य श्रीमदविजय भूपेन्द्र सूरिजी म. के देवलोक गमन के पश्चात उनके पाट पर उपाध्याय श्री यतीन्द्र विजयजी म. को प्रतिष्ठित का आचार्यपद से अलंकृत किया गया । मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. को चौथे आचार्यदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का सान्निध्य प्राप्त हुआ । मुनिराज श्री गुलाबविजयजी म. को उपाध्याय पद प्रदान किया गया । आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञा से मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. अलग से विहार कर विचरण करने लगे । अलग विहार करने पर मुनिराज श्री वल्लभविजयजी म. और मुनिराज श्री चारित्रविजयजी म. आपके साथ रहे । आपने थराद की ओर विहार किया । थराद में : थराद उत्तर गुजरात क्षेत्र में जैन धर्मावलम्बियों का अच्छा केन्द्र माना जाता है । यहां के गुरुभक्तों को जब विदित हुआ कि मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. आदि यहां पधार रहे हैं, तो वे अधीरता से उनकी प्रतीक्षा करने लगे। आपके आगमन पर धूमधाम से आपका नगर प्रवेश करवाया । इस अवसर पर विशाल वरघोड़ा भी निकाला गया। आपका थराद का कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा । मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने यहां सुतार शेरी में प्रतिष्ठा कार्य भी सम्पन्न कराया । आपने अपने साथी मुनियों के साथ वर्ष वि.सं. 1994 का चातुर्मास थराद में ही व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्ति के पश्चात ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आप डुबा अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान के दर्शनार्थ पधारे । यहां आपके पावन सान्निध्य में अट्ठाई महोत्सव का आयोजन किया गया तथा दण्ड ध्वज एवं कलशारोपण जैसे मांगलिक कार्य भी सम्पन्न हुए । मतभेद निवारण : विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. मोरसीम पधारे । यहां के संघ में मतभेद था। मतैक्य के अभाव में संघ को हानि हो रही थी । कुशाग्र बुद्धि के स्वामी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. ने सम्पूर्ण परिस्थिति को अच्छी प्रकार समझ कर दोनों पक्षों को एकता का महत्व बताते हुए उनके मतभेदों का निवारण किया। आपकी समझाईश पर दोनों पक्ष एक हो गये और मतभेद समाप्त हो गये । वर्षों के बाद यहां एकता स्थापित हुआ। हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 21 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्ट ज्योति स hoto
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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