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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन थि। तपस्वीरत्न मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. -आचार्य विजय हेमेन्द्र सूरि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल । इस भोपाल में किसी समय श्रीमान कालूरामजी नीमा का प्रतिष्ठित परिवार निवास करता था । वि. सं. 1944 की वैशाख शुक्ला तृतीया जो पूरे भारतवर्ष में अक्षय तृतीया के रूप में मनाई जाती है, श्रीमान् कालूरामजी नीमा के लिये विशेष हर्ष और उल्लास का कारण बनी । अक्षय तृतीया का महत्व सभी जाति एवं धर्म में माना जाता है किंतु इसका जैनधर्म में विशेष महत्त्व है और जैन धर्म में वर्षीतप के पारणे इसी दिन होते हैं । श्रीमान् कालूरामजी नीमा का सौभाग्य था कि इसी दिन उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रूक्मणिदेवी की पावन कुक्षि से एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ । अक्षय तृतीया जैसे शुभ दिन परिवार में पुत्ररत्न की प्राप्ति से हर्ष और उल्लास का वातावरण छा गया । इस दिन जन्म लेने वाले बालक का भविष्य एक प्रकार से स्वतः निर्धारित सा हो गया । यह बालक निश्चित रूप से धर्म के क्षेत्र में अपना और अपने परिवार का नाम उज्ज्वल करेगा । ऐसी धारणा परिवार जनों की बन गई । धूमधाम से पुत्र जन्मोत्सव मनाया गया । माता-पिता ने परिजनों की सहमति से बालक का गुण निस्पन्न नाम जगन्नाथ रखा । समय के प्रवाह के साथ बालक जगन्नाथ भी विकास करता गया । उसकी बाल सुलभ लीलायें सबको अपनी ओर बरबस आकर्षित कर लिया करती । आयु बढ़ने के साथ साथ बालक जगन्नाथ की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन परिलक्षित होने लगा । उसके स्वभाव में गम्भीरता दिखाई देने लगी। वह धर्माभिमुख होने लगा । जैनधर्म में पर्युषण पर्व की अवधि में धर्म की आराधना विशेष रूप से की जाती है । उसे पर्वाधिराज भी कहा जाता है । यह पर्व वर्ष में एक बार आता है । जिस समय बालक जगन्नाथ की आयु नौ वर्ष थी, उस समय पर्युषण पर्व के समय भोपाल नगर के जैन मंदिरों में बड़ी संख्या में आराधक धर्माराधना कर रहे थे । इन सब आराधकों में एक नौ वर्ष का बालक पूर्ण तन्मयता से ध्यान लगाकर भगवान् की स्तुति कर रहा था । सभी आराधक उसकी ओर देखते और उसकी धार्मिक भावना तथा भक्ति भावना की प्रशंसा करते । अनेक आराधक उसकी भक्ति भावना से प्रभावित होकर उसका परिचय भी जानने का प्रयास करते । इस अल्पवय में उसकी उत्कृष्ट धार्मिक भावना देख देखकर आराधकों को आश्चर्य भी होता था । कई एक कहते भी थे कि निश्चित ही यह बालक भविष्य में अच्छी धर्मप्रभावना करेगा । कहा भी है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई देते हैं । अथवा होनहार बिरवान के होत चिकने पात । जो लोग इस बालक का परिचय जानने के लिये उत्सुक थे, उन्हें उसका परिचय भी मिल गया । यह बालक श्रीमान कालूरामजी नीमा का सुपुत्र जगन्नाथ है । सभी लोग श्रीमान् कालूरामजी नीमा के भाग्य की सराहना करने लगे । इन लोगों में एक श्रेष्ठी केशरीमलजी तो जगन्नाथ से अत्यधिक प्रभावित थे । एक समय तो वे अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पाये और उन्होंने पूछ ही लिया - "तुम किसके पुत्र हो?" "जी, श्री कालूरामजी नीमा मेरे पिताश्री है ।" विनयपूर्वक जगन्नाथ ने उत्तर दिया । "तुम्हारा नाम क्या है?" "जी, जगन्नाथ मेरा नाम है ।" "आज तुमने कौनसी तपश्चर्या की?" "जी, आज उपवास है ।" आगे जगन्नाथ ने बताया- "एक दिन भूखा रहने से कोई मरता नहीं । उसके दो लाभ हैं- एक शरीर स्वस्थ रहता है और दूसरा इन्द्रियों के विकारों का विनाश होता हैं जिससे नये कर्मों का उपार्जन नहीं होता ।" बालक की ज्ञानगर्भित बातें सुनकर श्रेष्ठी केशरीमलजी आश्चर्यचकित रह गये । कुछ व्यक्ति पास खड़े होकर उनका वार्तालाप सुन रहे थे । उनमें से एकने कहा - "निश्चित ही यह बालक आगे चलकर महान बनेगा । यह अपना व अपने कुल का नाम उज्ज्वल करेंगा ।" वास्तव में मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में ऐसी धार्मिक भावना एवं ज्ञान विरले लोगों को ही होता है । हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 17 हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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