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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ। श्री यतीन्द्रसूरि में शिक्षा कैसी हो? यह निम्नांकित पद्य से ज्ञात हो जाता है । देखें : गुरुदेव सेवा कीजिये नित, नाश हो अज्ञान का | आशीष उनकी लीजियेगा, उदय हो शुभज्ञान का || शिखा हृदयंगम कीजियेगा, मनसमन खिल जायेगा | अनुकूल रहना सतत उनके, शिष्य धर्म कहलायेगा || इसमें गुरुजी की सेवा एवं शिष्य धर्म का भी समावेश हो गया है । निम्नांकित पंक्तियों में गुरुदेव का उपदेश कितना सटीक है। है जिन्दगी - दिनचार की, यह मोह करना व्यर्थ है । माता-पिता पुत्र मित्र, द्वारा स्वार्थ के साथी सभी । आया अकेला है यहां पर साथ क्या लाया तभी । इन पंक्तियों की विस्तृत व्याख्या से अनेक बातें स्पष्ट हो जाती है । पथिक मणिमाला में सप्त व्यसन पर लिखा : सप्तव्यसन से वे सदा, पाप तत्त्व की रेख | रोना हंसता भोगवे, अशुभ करम का लेख || चरम तीर्थकार श्री महावीर काव्य वृति में भगवान महावीर के विवाह का विवरण कुछ इस प्रकार दिया गया है: समरवीर भूपति की कन्या, ललित यशोदा जिसका नाम | रति से भी थी अतिशय सुन्दर, विनयवती सौन्दर्य सुधाम || वर्धमान से पाणिग्रहण संस्कार हुआ शुभ पर्व समान | भाग्यवती हो गई यशोदा, या प्रभु का आश्रय महान || इसी काव्य कृति में प्रभु की देशना शीर्षकान्तर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, परदारा सेवन, रात्रिभोजन, अठारह पाप स्थान आदि का सुन्दर रीत्यानुसार वर्णन किया गया है । पंचम काल का प्रभाव शीर्षकान्तर्गत राजा प्रजा के सम्बन्ध में कहा गया है : राजा प्रजा सभी होवेंगे, क्रोधी लोभी एक समान | छल छदमी बनकर लूटेंगे, कर आपस में द्वन्द महान || अनुशासन को छोड़ बनेगी उच्छृखल सब की संतान | घृणा करेंगे धर्म कर्म से लेगा न कोई धार्मिक ज्ञान || प्रस्तुत आलेख में हमने सांकेतिक रूप से सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर यह बताने का प्रयास किया है कि आचार्य श्रीमदविजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. विरचित काव्य साहित्य में सभी प्रकार का विवरण उपलब्ध है । आवश्यकता इस बात की है कि उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में उसका अध्ययन हो । हमने तो एक प्रकार से संकेत किया है । विश्वास है जिज्ञासु विद्वान, अनुसंधानकर्ता इस दिशा में पहल करके इस कार्य को पूर्णता प्रदान करने का प्रयास करेंगे। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्ब ज्योति 16 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Indirat ional
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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