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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ षष्ठम पट्टधर राजेन्द्रसूरि के, आप सत्य, अहिंसा साधक हैं । आपने जाना माया, मोह तो, भक्ति पथ में बाधक है ।। एकाग्रचित हो आपने, किया धर्म का चिन्तन । धन्य विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, धन्य आपका जीवन ।।3।। तप, संयम के द्वारा आपने, सन्त शिरोमणि पद पाया है । यों आत्म चिन्तन कर आपने, अमृतफल पाया है ।। हीरक जयन्ती के शुभ अवसर पर, हम करते तव अभिनंदन । अमृत महोत्सव के अवसर पर, स्वीकारों हमारा वन्दन ।। धन्य विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, धन्य आपका जीवन ।।4।। जैन संस्कृति के उत्थान हेतु, आप सदा यों लगे रहें । इन सेवाभावी राष्ट्रसंत के, निकट सदा, हम बनें रहें ।। करे शतायु प्रभु आपको स्वस्थ रहे तन औ मन । धन्य विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, धन्य आपका जीवन । वासन्ती वय में काया करदी, जैन धर्म को अर्पण ।।5।। 1 अन्तर के उद्गार (राग : गुणती रे खोले ने बारे काढ़ रे वणजारा, (लोक भजन) -श्री भंवर चौधरी धीर ने वीरों री धरती दीपती दुनिया में, एरत्नों री खाण हे राजस्थान हो जी ..... मरूधर भूमि में थे तो उपना गुरुवरजी, ए दिपायुं दुनिया में अमर नामहो जी धीर ने वीरों री धन्य श्री ज्ञानचन्दजी तात ने गुरुवरजी, ए धन्य हे उजम थारी मात हो जी ........ काया ने माया कारमी जाणी ने गुरुवरजी, ए लीधो रे संयम करो पंथ हो जी ....... धीर ने वीरों री हेमेन्द्रज्योति हेमेन्द्रज्योति 74 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Hamalinelibraroo
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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