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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ । आत्मबली गुरुदेव -फतेहलाल कोठारी, रतलाम छियासी वर्ष की आयु में अपना कार्य स्वयं करना, साधना-आराधना करना और हजारों किलोमीटर की पद यात्रा करना कोई सरल कार्य नहीं है। सामान्य व्यक्ति तो ऐसा कर ही नहीं सकता। कोई दृढ़ इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति, दृढ़ आत्मबली ही ऐसा कुछ कर पाता है। परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करें तो हमें यह एक देखकर आश्चर्य होता है कि अपनी इस वय में भी वे आज भी सक्रिय हैं। निश्चित ही पूज्य गुरुदेव दृढ़ आत्मबली हैं। मुझे जब यह विदित हुआ कि उनके दीर्घकालीन संयमी जीवन के परिप्रेक्ष्य में एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है तो मेरे आनन्द की सीमा नहीं रही। निश्चित ही यह अभिनन्दन ग्रन्थ अनुपम होगा। ग्रन्थ के प्रकाशन की सफलता के लिये मैं अपने हृदय की गहराई से शुभकामना अभिव्यक्त करते हुए पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सुस्वस्थ दीर्घ जीवन की भी कामना करता हूँ और उनके चरण कमलों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ। उनका आशीर्वाद सब पर समान है। -नथमल खूमाजी, बागरा जब सूर्य की किरणें धरती पर पड़ती है तो वे बिना अमीर-गरीब, मूर्ख-विद्वान का भेद किये सब पर समान रूप से पड़ती है। ठीक इसी प्रकार आस्था के केन्द्र परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. जब अपने श्रीमुख से मंगल वचन फरमाते हैं तो वे बिना किसी भेदभाव से सबके लिये समान होते हैं। उनके प्रवचन पीयूष की वर्षा भी समान रूप से होती है। उनके श्री चरणों में सबको समान रूप से स्थान प्राप्त है। वहाँ किसी भी प्रकार का भेदभाव परिलक्षित नहीं होता है। अपनी आयु के इस पड़ाव पर भी परम पूज्य आचार्य श्री सक्रिय है। हमारे लिये सुखद एवं संतोष की बात है। परम पूज्य आचार्य श्री की दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर प्रकाशयमान अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के लिये मैं अन्तर मन से अपनी शुभकामना प्रेषित करते हुए उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हूँ। दक्षिण धरा पर धूम मच गई, -मांगीलाल भंडारी, हैदराबाद प्रातःस्मरणीय, विश्व पूज्य श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के अनुयायी वर्ग का एक बहुत बड़ा भाग दक्षिण भारत में विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत है। पूज्य गुरुदेव की परम्परा के साधु-साध्वी वृन्द का जब भी दक्षिण भारत की ओर पर्दापण होता है तो हमारा मन मयूर नाच उठता है। वर्षा से हम दक्षिण भारत के निवासियों की भावना थी कि परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. दक्षिण भारत की ओर पधारे ताकि इस ओर धार्मिक कार्य सम्पन्न हो सके और हमें भी उनकी सेवा करने का लाभ मिल सके। हम दक्षिण भारतीय भक्तों की भावभरी विनती को मान देकर पूज्यश्री लगभग तीन वर्ष पूर्व इस ओर पधारे। आपश्री के इस ओर पधारते ही धार्मिक उत्सवों, कार्यक्रमों आदि की धूम मच गई। आपके अनुयायियों में नये उत्साह का संचार हुआ। आनन्द की सरिता प्रवाहित होने लगी। इसी समय हमें यह भी ज्ञात हुआ कि पूज्यश्री के दीर्घ संयमी जीवन को ध्यान में रखते हुए एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर आपश्री के चरणों में समर्पित करने का कार्य भी चल रहा है। मैं इस अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता के साथ ही पूज्यश्री के सुदीर्घ स्वस्थ जीवन की कामना अन्तरमन से करते हुए पूज्यश्री के चरणों में अपनी वन्दना प्रस्तुत करता हूँ। हेगेन्द ज्योति* हेमेन्द ज्योति 66 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति DILCobraepdates
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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