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________________ बच्चो, हम गुरुकुल में क्यों आए हैं ? हम जैन हैं, हमें श्रावक बनना है, श्रावक जिनेश्वर देव का उपासक होता है। 'देव-गुरु-धर्म' का आज्ञाकारी सेवक होता है। हमें भी परमात्मा अरिहन्त देव का आज्ञाकारी सेवक एवं सुश्रावक बनना है। श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल हमारी प्राण प्यारी संस्था है। यह संस्था हमारी माता है। हम इस संस्था के लिए तन, मन और धन न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं। यह हमारा नैतिक कर्त्तव्य है। हम श्रावक बनकर विजय वल्लभ सेनानी बनेंगे। धर्म और धर्मी जनों के रक्षक बनेंगे। आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न-रत्नाकर सूरि पाट परम्परा के आज्ञाकारी बनकर अपने आपको धन्य मानेंगे। जय जिनेश्वर देव ! गुरुकुल के छात्रों के दैनिक कार्य 1. प्रातः उठकर विद्या गुरु को प्रणाम करना। प्रार्थना हाल में सामूहिक प्रार्थना (श्री वल्लभ गुरु के चरणों में) करना। शारीरिक स्वस्थ्यता के लिए 10 मिनट व्यायाम करना। प्रभु दर्शन। प्रतिदिन स्नान करके जिनपूजा करनी (रविवार को पूजा के पश्चात् स्नात्र पूजा पढ़ानी) प्रतिदिन नवकारसी एवं मुट्ठि-सहिअं करना (दायां हाथ भूमि पर स्थापित करके 3 नवकार पढ़ना)। 7. भोजन करके थाली, गिलास, कटोरी धोकर पीना। 8. प्रतिदिन नियमित स्कूल जाना। 9. स्कूल से आकर भोजन करने के पश्चात् स्कूल से मिला स्कूल कार्य करना। 10. सायं के भोजन से पूर्व आधा घण्टा खेलने की अनुमति (छुट्टी)। 11. सूर्यास्त समय में जिन मन्दिर जी में आरती। 12. सायं 7.00 बजे से 8.00 बजे तक धार्मिक सूत्र एवं तत्त्व ज्ञान की पढ़ाई। बाद स्कूल का कार्य व पढ़ाई। 13. रात्रि 9.00 बजे विद्या गुरु को प्रणाम करके 'जय जिनेश्वर देव' कहकर अपने अपने कमरों में जाकर सात नवकार मन्त्र गिनकर सोना। गुरूवल्लभ गुरूकुल कालेज की शान है विद्यालय 70 70 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 150 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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