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________________ गुरुकुल/विद्यालय योजना आपको विदित ही है कि अम्बाला शहर में गच्छाधिपति आचार्य भगवन् श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी म.सा. जी का चातुर्मास सुखसाता पूर्वक चल रहा है। आचार्य श्री जी का चातुर्मास श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ अम्बाला शहर के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। पाकिस्तान बनने के पश्चात् अम्बाला शहर में गुजरांवाला गुरुकुल की तरह श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म.सा. की 50वीं पुण्य तिथि वर्ष के उपलक्ष्य में गच्छाधिपति आचार्य भगवन ने करवाकर उत्तर भारत के श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय पर जो उपकार किया है, वह भुलाया नहीं जा सकता। गुरु आत्म वल्लभ के मिशन में एक और कड़ी जुड़ने से सुनहरी अवसर प्राप्त हुआ है। वास्तव में भले ही हमने श्रावक कुल में जन्म लिया है परन्तु हमारे में जैनत्व के संस्कार नहीं। हमारे बच्चे सम्यक्त्व ज्ञान पाकर श्रावकाचार युक्त जीवन बिताएं। श्रमणोपासक यानि श्रमण भगवान महावीर स्वामी के उपासक बने, सुसंस्कारी एवं सच्चे श्रावक बने, इसके लिए श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की स्थापना की गई है। आओ हम तन, मन और धन से अपने आपको इस पर न्यौछावर करें। गुरुकुल योजना श्री आत्म वल्लभ श्रमणोपासक गुरुकुल प्रथम तल (प्रथम मंजिल) दान देने वाले का नाम नकरा 11 लाख रुपये द्वितीय तल (द्वितीय मंजिल) नकरा 11 लाख रुपये 20 फुट X30 फुट के नकरा 2 लाख रुपये प्रति कमरा 40 कमरे बनेंगे। तन मन और धन से सहयोग दीजिए धन्यवाद ! विद्यालय योजना श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक विद्यालय प्रथम तल (प्रथम मंजिल) दान देने वाले का नाम नकरा 15 लाख रुपये 20 फुट X 25 फुट के 25 कमरे नकरा 1.5 लाख रुपये प्रति कमरा प्रथम तल पर बनेंगे। आनन्द कुमार जैन मंत्री “उपरोक्त गुरुकुल एवं विद्यालय में कोई भी व्यक्ति, संघ, संस्था, शिक्षण संस्थाएं अपनी अपनी शक्ति के मुताबिक भाग ले सकती हैं। वल्लभ गुरु के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए अम्बाला नगर को यह लाभ मिला है। यह महान् कार्य युगों तक चिरस्मरणीय बनेगा। अपना समाज सुसंस्कारी, वीतराग प्रभु का उपासक, परम श्रावक बनें, इस अपेक्षा से सम्पर्क कर रहे हैं। उत्तर भारत के इस कार्य में अम्बाला श्रीसंघ को सहयोग दें, यह मेरा आदेश है।" आचार्य रत्नाकर सूरि श्री आत्म वल्लभ जैन श्रमणोपासक गुरुकुल की नियमावली ध प्रेम से रहेंगे। बड़े छात्र छोटों से स्नेह करेंगे और छोटे छात्र बड़ों का आदर करेंगे। बाहर से आने वाले गुरुकुल पदाधिकारी, माता पिता एवं जैन बन्धु आदि का सत्कार करना। 'जय जिनेश्वर देव' कहना भोजन एवं पानी बैठकर खाना पीना। जूठन नहीं छोड़ना। 'कम खाओ, गम खाओ, नम जाओ' इन तीनों बातों का पालन करना और सुखी रहना। जिन पूजा करने से पहले स्नान कम से कम पानी से करना, अन्यथा नहीं। बिना कारण से किया हुआ स्नान भैंसा स्नान कहलाता है। जिनेश्वर देव ने पानी में अनन्त जीव बताए हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से पानी के एक अणु में 36656 जीव हैं, वह भी अपने जैसे हैं। इसलिए कम पानी का उपयोग करना चाहिए। विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 69 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.ord
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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