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________________ क्रान्तिकारी जैनाचार्य विजय वल्लभ परम पूज्य साध्वी चन्द्रयशा श्री जी म की सुशिष्या साध्वी पुनीतयशा श्री जी “जग में जीवन श्रेष्ठ वही, जो फूलों सा मुस्काता है, अपने गुण सौरभ से जग में कण-कण को महकाता है। केसरिया बाना धारी तुम, भक्तों के रखवाले तुम, 'रवि सम सा विश्व क्षितिज जैनों के उजियारे तुम।। जिनके गुणों की आभा, सजा गई संसार, स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी गुरु वल्लभ की, देती है प्रेरणा महान्। छोड़ धरा को गुरु आपने, स्वीकार लिया देवों का धाम, 'देवों के भी देव बन गए, चरण कमल में करूं प्रणाम।" मनुष्य के जीवन में गुरु की प्राप्ति होना गुरुदेव के गुणों को शब्दों के माध्यम से कैसे का बिगुल बजाया। एक दृढ़ संकल्प किया और एक महान् उपलब्धि है। गुरु एक ऐसी वर्णन कर सकेगी। ___ उसे पूर्ण करने के लिए जीवन समर्पित कर आध्यात्मिक शक्ति होती है जो मनष्य को नर से धन्यधरा है वह गजरात की, जिन्हें ऐसे दिया। गरु वल्लभ ने आपत्तियों की आंधी की नारायण, आत्मा से परमात्मा बना देती है। गुरु महान् आदर्श संत पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परवाह नहीं की। अरे, विरोधी दलों ने भयंकर एक ऐसे श्रेष्ठ कलाकार होते हैं जो अनगढ़ रूपी उस पावन नगरी बड़ौदा की धरा धन्य है। जो तूफान खड़े किये, लेकिन संकटों के सागरों को। पत्थर को भी प्रतिमा के रूप में परिवर्तित कर ऐसे होनहार प्रतिभाशाली छगन को पाकर साहस व धैर्य रूपी नौका के सहारे पार करते रहे। जनता के लिये पूजनीय बना देते हैं। ऐसे सौभाग्यशाली बनी। स. 1927 कार्तिक शुक्ला और सफलता उनके चरण चूमती रही।। महामना क्रान्तिकारी, युगदृष्टा, गुरु वल्लभ का द्वितीया के शुभ दिन मां इच्छा, पिता दीपचंद के गुरु वल्लभ ने समाज के आत्मोत्थान के स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव आज भारत घर जन्म लेकर प्रकाशमान कुल दीपक हुए। साथ-साथ शिक्षा, सेवा, संगठन, साधर्मिक वर्ष के कोने-कोने में मनाया जा रहा है। माता-पिता के आंगन को दिव्य प्रकाश से वात्सल्य व साहित्य प्रचार के क्षेत्र में जो गुरु वल्लभ के प्रत्यक्ष दर्शन का सौभाग्य आलोकित कर दिया। उस छगन का जीवन अनगिनत कार्य किये, उनसे यह जैन समाज तो मुझे प्राप्त नहीं हुआ लेकिन उनके चिंतन द्वितीय के चांद' की तरह माता-पिता के कदापि उऋण नहीं हो पायेगा। गुरु वल्लभ के और उनके गौरवान्वित कार्यों का जब अवलोकन सुसंस्कारों से उत्तरोत्तर सम्पूर्ण कलाओं से हृदय से करुणा का स्रोत प्रतिपल प्रवाहित होता करती हूं तब यह मनवा उनके चरणों में स्वतः ही विकसित होने लगा। मां के द्वारा कहे गये था। जो भी आपकी शरण में दुःख रूपी आंसुओं झुक जाता है। प्रेरणादायी वचनों को पूत्र छगन ने जीवन मंत्र को बहाता हुआ आया, वह खुशियों से झोली। गुरुदेव के बारे में क्या लिखू। उनके बना लिया। अमर धन व सच्ची शान्ति पाने का भरकर लौटा। गुरुदेव की वाणी में चुम्बकीय सहज, सरल, महान जीवन के बारे में जितना एक दृढ़ संकल्प कर लिया और एक दिन संयम आकर्षण था। गुरुदेव का आध्यात्मिक जीवन लिखा जाये उतना कम है, गुरुदेव का जीवन तो पथ के अनुयायी बन गए। उन्नति के शिखर पर पहुंचा हुआ था। किसी भी। स्वयंभू रमण समुद्र से भी विशाल था। गुरुदेव तो गुरु आत्म के विचारों को साक्षात रूप प्रकार के प्रदर्शन व बाह्य आडंबर की कामना एक चिन्तामणी रत्न थे। अरे, जिनका स्मरण देने के लिए गुरु वल्लभ ने समाज रूपी उद्यान नहीं थी। उन्हें पद्वी से नहीं, कार्य से प्रेम था। मात्र ही अनंत लब्धिदायक है। मेरी अल्पबुद्धि को पुष्पित और पल्लवित रखने के लिए क्रान्ति नाम की नहीं काम की चाहना थी। समाज के 1501 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका 49 Jain Education International For Private &Personal use only www.jainelibrary.org.
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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