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________________ कई आचार्य भगवंतों ने संघ निकाले, ऐसे अनेक विविध कार्यों द्वारा सबने जैन शासन की अनुपम सेवा की। गुरु आत्म ने भी अनेक मंदिरों का निर्माण किया। ग्रंथों की रचना की। गुरु वल्लभ ने सरस्वती मंदिरों की स्थापना, समाज को एक नूतन चेतना, नयी दिशा, जागृति, नया मोड़ दिया। श्रीमद् विजय बल्लम सूरि 50 स्वर्गारोहण वर्ष मानव जीवन की बगिया को सजाने के लिये आप सच्चे मानव बने। मानवता के मसीहा वल्लभ ने युगानुरूप संदेश गागर में सागर भरा। आप जब प्रवचन देते, तो गंगा और यमुना छलकती और बोलते तो गागर में सागर भरती । ‘महाभारत' में कहा गया है कि “परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्” पुण्य परोपकार करना है तथा पाप दूसरों को कष्ट देना है।” गुरु वल्लभ ने कहा, “धर्म का स्थान वहीं है जहां पुण्य है तथा अधर्म का स्थान वहाँ है, जहाँ पाप है। युगवीर ने मानव कल्याण तथा जीवों पर दया करने को ही अपना लक्ष्य बनाया। जैन धर्म की नैया को डूबने से बचाया। आज हमें सद्गुरु के पावन संदेशों की आवश्यकता है। विशाखा नक्षत्र में गुरु बल्लभ का जन्म हुआ। भगवान महावीर का आदर्श और सिद्धान्त कहाँ है हमारे जीवन में ? आज युगवीर गुरु वल्लभ अर्द्धशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रभु को साक्षी मान कर पुनः यह संकल्प करें कि हम व्यर्थ के आडम्बर त्याग कर लोक उपकार के मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल बनायेंगे। इसी में मानवता की रक्षा, समाज की उन्नति और विश्वशांति संभव है। गुरु वल्लभ ने जीवन में समाज उद्धार का कार्य तथा विश्वशांति का ही संदेश दिया। भारत देश ऋषि-मुनियों की भूमि है। यहाँ समय-समय पर मानवता के बगीचे को हरा-भरा रखने वाली महान् विभूतियां पैदा होती रहीं हैं। आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज भी एक ऐसी ही विभूति थे। जिन्होंने अपने साधु जीवन को आगम अनुकूल बनाया, जिनका आदर्श जीवन आज भी एक ज्योति स्तम्भ के रूप में समाज को नूतन दिशा प्रदान कर रहा है। आप एक ज्योति पुंज थे। 42 धागों को जोड़ा तो परिधान बन गया, ईंटों को जोड़ा तो मकान बन गया। मानव के बिखरे हुए कणों को जोड़ा तो, एक सच्चा इन्सान बन गया। Jain Education International एक 'क्रान्तिकारक युगदृष्टा' के रूप में जैन संस्कृति के प्रथम जैनाचार्य गुरु वल्लभ थे। गुरुकुल पद्धति पर आधारित मुझे ऐसे विद्यालयों एवं पाठशालाओं का निर्माण करवाना है, जिनमें शिक्षा प्राप्त कर, हर व्यक्ति अपना आध्यात्मिक उत्थान कर सके। इसी प्रयोजन को आत्म केन्द्रित करके, गुरु वल्लभ ने गुरुकुल-कॉलेज-विद्यालय-पाठशालायें खुलवायीं । जिनमें श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई, श्री आत्मानंद जैन कॉलेज-अम्बाला, “विजयानंद कह गये वल्लभ से, हे वल्लभ तुम सुन लेना । मंदिर बन गये नगर-नगर में, गुरुकुल स्थापित कर देना।" विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only 50 www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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