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________________ औद्योगिक नगरी लुधियाना में निर्मित श्रीमद् विजय वल्लभ गुरु मन्दिर के निर्माण का संक्षिप्त इतिहास गुरुवर विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. का देवलोक गमन आसोज वदि, एकादशी सन् 1954 को मुंबई ' भायखला' में हुआ था। उनके पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार भायखला में किया गया । वह स्थान 'गुरु मन्दिर भायखला' के नाम से प्रसिद्ध है। पार्थिव शरीर के अस्थि पुष्प उठाने के समय विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. ने उन अस्थि पुष्पों को अलग-अलग कलशों में रखा था। उक्त रस्म के समय पंजाब के लुधियाना शहर से दो व्यक्ति मौजूद थे जिनके नाम क्रमशः भगत दौलत राम जी 'पाटनी' तथा ला. सरदारी लाल जी 'कोठी वाले' थे । भगत दौलत राम जी के द्वारा आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वर जी म. से पंजाब के लिए गुरु देव की निशानी मांगने पर पूज्य गुरु देव ने अस्थि पुष्प का एक कलश उनके सुपुर्द कर दिया ताकि पंजाब में एक गुरु समाधि मन्दिर बन सके। वह अस्थि पुष्प का कलश लेकर वापिस लुधियाना आ गये, अस्थि पुष्प रखने के लिए कोई उचित व्यवस्था उस समय न होने पर संघ की आज्ञा से भगत दौलत राम जी ने अपने निवास स्थान मुहल्ला बन्दया में लाकर अलमारी में यथा स्थान विराजित कर दिये और प्रतिदिन धूप एवं अगरबत्ती से पूजा करते रहे। लम्बे समय तक समाज के द्वारा विभिन्न प्रयत्न करने पर भी पुष्प स्थापित करने के लिए कोई उचित स्थान नही मिला। इसी दौरान भगत दौलत राम जी का स्वर्गवास हो गया और अस्थि पुष्पों के देखभाल की जिम्मेदारी इनके दोनो बेटे श्री तरसेम लाल पाटनी, श्री विमल कुमार पाटनी के कंधो पर आ गयी। अक्तूबर 1993 में श्री तरसेम लाल जी की मौत हो गयी। मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व श्री तरसेम कुमार जी ने अपने दोनो बेटों पुष्प दंत पाटनी एवं ललित भूषण पाटनी से कहा कि परमात्मा ने हमको सब कुछ दिया हुआ है। गुरु अस्थि पुष्पों के लिए एक उचित सम्माननीय पवित्र स्थान का प्रयोग कर, गुरु पुष्पों को वहाँ पर स्थापित कर देना और सुबह शाम धूप-बत्ती करते रहना । मृत्यु उपरांत रस्म पगड़ी के समय परिवार की तरफ से अपने अजैन मित्र श्री बसंत लाल धनदेवी परिवार के वंशज श्री राजिन्द्र कुमार जी के सहयोग से स्थान और उचित राशि के साथ गुरु मन्दिर निर्माण की घोषणा की गई और उसी सभा में भगवान् महावीर जैन सेवा संस्थान के चेयरमैन श्री सिकन्दर लाल जैन ने सहर्ष संघ के सहयोग से निर्माण कार्य को पूर्ण करने का विश्वास दिलाया। भगवान् महावीर जैन सेवा संस्थान एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट है जिसकी स्थापना कर श्री राजेन्द्र कुमार जी ने सामाजिक कार्यों के लिये भूमि अनुदान देकर फाउन्डर ट्रस्टी होने का सौभाग्य प्राप्त किया । उपरोक्त घोषणा के अनुसार श्री सिकन्दर लाल जी अपने साथियों के साथ उस समय विराजमान गच्छाधिपति श्री मद् विजय 214 Jain Education Internation इन्द्र दिन्न सुरिश्वर जी म. की सेवा में गुरु विजय वल्लभ समाधि मन्दिर बनाने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुए। गच्छधिपति जी ने खुशी का इज़हार करते हुए, रविवार दिनांक 5-12-1993 को भूमि खनन करने का और 8-12-1993 को शिलान्यास करने का मुहूर्त दिया। समय बहुत कम था लेकिन जिस कार्य को होना होता है, वो अपने लिए रास्ता स्वयं बना लेता है। कुछ ऐसा ही चमत्कार हुआ। गुरु कृपा से दोनों कार्य महत्तरा साध्वी मृगावती श्री जी महाराज की सुशिष्या साध्वी सुव्रता श्री जी म., साध्वी सुयशा श्री जी म. एवं साध्वी सुप्रज्ञा श्री जी म. की पावन निश्रा में सम्पन्न हुए और निर्माण कार्य तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा और गुरु प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा 22-7-1996 को विधि विधान पूवर्क सम्पन हुई। गुरु महाराज जी के अस्थि पुष्प कलश 10-6-1994 को भूमि में स्थापित किया गया एवं 9-7-1995 को प्रतिमा जी की स्थापना हुई । इस प्रकार तत्कालीन गच्छाधिपति श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज के शुभ आशीर्वचन एवं शुभ आशीर्वाद से इस मन्दिर के सभी कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हुए और यह मन्दिर अस्तित्व में आ गया। गुरु मन्दिर के निचले हिस्से में देवी मां पद्मावती जी की प्रतिमा विराजमान है। इस गुरु मन्दिर में देवी प्रतिमा को विराजमान करने का अपना कारण है। देवी मां ने स्वप्न में इस निर्माण कार्य में आने वाली रुकावटों को दूर करने का वचन दिया था और साक्षात् यहां पर विराजमान होने की भावना प्रकट की थी। इसी कारण यहां देवी प्रतिमा की भी स्थापना की गई है। गुरु अस्थि 'पुष्प इस मन्दिर जी में गुरु चरण पादुका के नीचे रखे हुए हैं, इस कारण इसे गुरु समाधि मन्दिर भी कहते हैं । वर्तमान में यह मन्दिर 'गुरु मन्दिर' के नाम से प्रसिद्ध है। उत्तरी भारत में यह अपनी तरह का एक आलौकिक एवं कलात्मक मन्दिर है। प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में गुरु भक्त, गुरु वंदन एवं गुरु का दिव्याशीष प्राप्त करने के लिए इस मन्दिर जी में आते हैं और साथ में देवी माता का वंदन एवं दर्शन करते हैं। स्वपन में दिए गए वचन के अनुसार देवी माँ पूरे निर्माण कार्य में सहायक रुप बनी रही और जो भी भक्तजन यहाँ पर श्रद्धा से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, माता उनकी मनोकामना पूरी करती है। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती होती है और वर्ष भर में आसाढ़ सुदी पंचमी एवं षट् को 18 अभिषेक, गुरु पूजन और श्री पार्श्व - पदद्मावती महापूजन पूर्ण विधि-विधान के साथ आयोजित किया जाता है। विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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