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________________ श्री विजय वल्लभ एक वयोवृद्ध मुनिराज की दृष्टि में प्रवर्तक श्री कांति विजय जी महाराज श्री विजयानन्द सूरि की परम्परा के सर्वाधिक वृद्ध साधु प्रवर्तक श्री कान्ति विजय जी महाराज द्वारा सन् 1940 में, 90 वर्ष की अवस्था में श्री वल्लभ जी के प्रति अपने भाव-सुमन इन शब्दों में अर्पित किए गए थे। आज प्रवर्तक जी हमारे बीच नहीं है, किन्तु उनकी मधुर स्मृति बनी हुई है। ____ “एक बार मैंने गुरुदेव (विजयानन्द सूरि) से निवेदन किया कि, “आपने पंजाब देश को अपने उपदेशामृत से बहुत सींचा है और धर्म के कितने ही महान् कार्य किए है। मेरी तो यह शुभेच्छा है कि आप चिरकाल तक हमारे बीच रहें, मगर आपने जिन-जिन क्षेत्रों को अपने धर्मोपदेश से पावन किया है, उनकी रक्षा करने वाला और धर्म-उन्नति करने वाला हमीं में से कोई तैयार हो जाए, तो अच्छा है।” उसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा, “तुम सब साधु गुजराती हो, इसलिए तुम्हें अपने देश का मोह बना रहेगा। तुम्हारा बार-बार पंजाब आना दुर्लभ है। परन्तु फिर भी मेरा ख्याल वल्लभ पर जाता है। यह वल्लभ यहाँ पर धर्म की प्रभावना कर सकेगा।" यह सुन कर मेरे दिल को शान्ति तो हुई, परन्तु मुझे यह आशा बहुत कम थी कि वल्लभ विजय जी गुरुदेव के वचनों को सार्थक सत्य प्रमाणित करेंगे। आज इन बातों को लगभग 44 वर्ष हो गये हैं, अब मैं अपने जीवन के अन्दर ही यह देख रहा हूँ। गुरुदेव के वे सुनहरे वचन देववाणी के समान यथार्थ थे। गुरुदेव के भक्त विजय वल्लभ सूरि जी ने उनके एक-एक शब्द को सत्य प्रमाणित किया है। ये पंजाब पर अपार उपकार करने में संलग्न हैं और गुरुदेव की भावनाओं की पूर्ति कर रहे हैं। मैं उनके किये गये कार्यों को सुनकर बहुत प्रसन्न होता हूँ।" Jan Education International For Private Personal use only www.jainelibrary or
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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