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________________ युगवीर वल्लभ का राष्ट्र, समाज एवं धर्म की उन्नति में योगदान -०-० 11010 हमारा राष्ट्र भारतवर्ष पुरानी रूढ़िवादी धार्मिक, रीतिरिवाजों और अंग्रेजों की मानसिकता की गुलामी से जकड़ा हुआ था। भारतीय संस्कृति को रौंदा जा रहा था। इस सभी से उक्त होने के लिये भारत में कई प्रकार के आंदोलन एवं जाग्रति चेतना लिये प्रयत्न हो रहे थे। ऐसे समय में आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ वे भी इन कुरीतियों, दासता की बेड़ी से मुक्त होना चाहते थे। भगवान महावीर के अहिंसा सिद्धान्त को बढ़ावा देते हुए समाज की रूढ़िवादी प्रथाओं को हटाना चाहते थे, ऐसे विचारों से ओतप्रोत एवं मार्गदर्शन से प्रभावित जैन दीवारों को तोड़ते हुए क्रांतिवीर की तरह से बढ़ते रहे। अपनी लेखनी धर्म के अग्रिम श्रावक श्रीमद् राज चन्द्र का महात्मा गांधी से सम्पर्क हुआ, द्वारा चरित्रता की शिक्षा दी, मानव मूल्यों को समझाया और अज्ञान के आचार्य जी के विचारों का गांधी जी पर बड़ा प्रभाव पड़ा, अहिंसा का अंधकार को दूर करने का प्रयास किया। उनका अपना यह कथन था कि महत्व समझा, जिसको गांधी जी ने अपने जीवन में उतारा और भारत 'न मैं जैन हूँ न बौद्ध , न वैष्णव हूँ न हिन्दू , न ही मुसलमान-न ईसाई हूँ, स्वतंत्रता के आंदोलन को तीव्र गति प्रदान करी। मैं तो वीतराग देव परमात्मा को खोजने के मार्ग पर चलने वाला मानव हूँ, श्री वल्लभ सूरि जी आधुनिक भारत के उन संतों में हैं, जो न यात्री हूँ। इसी भावना के साथ मानव को धर्म की प्रेरणा देते हुए कुरीतियों केवल दार्शनिक व्याख्या करने वाले विचारक थे, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन को दूर करने का प्रयास करते रहे, जिससे हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जैन, में सक्रिय भूमिका निभाई, देश की ज्वलंत समस्याओं को गांधी जी, मदन पारसी आदि सभी अमीं के पालन करने वाले श्री गुरुदेव के चरणों में श्रद्धा मोहन मालवीय, मोती लाल नेहरू और अनन्य देश भक्तों के विचारों से से अपना शीश नमाते थे। अवगत होकर देखा-समझा और कार्य को व्यावहारिक रूप में उपाय किये, श्री वल्लभ गुरु का व्यक्तित्व इतना आकर्षक था कि जो भी व्यक्ति स्वयं पैदल पदयात्रा करके पाकिस्तान में स्थित लाहौर, गजरांवाला. एक बार उनके सम्पर्क में आ जाता था, वह उनके प्रेम से अभिभूत हो सियालकोट इत्यादि शहरों गांवों और पंजाब जैसी जगह पर प्रेम की वाणी जाता था। उनमें समन्वय के प्रति प्रखर निष्ठा थी. वे विरोधियों के उत्तर द्वारा चेतना पैदा करी। उन्होंने खादी के उपयोग पर बल दिया, धर्म की भी समन्वय और शांति से दिया करते थे, साथ ही वे कहा करते थे कि रूढ़िवादिता पर प्रहार किया और हिन्दी मातृभाषा सीखने पर जोर दिया सभी धर्मों के मानने वाले सभी भारत की संतान हैं और प्रत्येक भारतवासी स्वयं गुजराती भाषी होते हुए भी हिन्दी भाषा में काव्य एवं लेखों द्वारा का धर्म है कि सेवा ही सच्चा धर्म है, सच्ची नमाज और सच्ची गुरु दक्षिणा पाखंड और अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया,मजह के भेदभाव की है। तत्कालीन रेलमंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा ने अपने उद्गार प्रकट किये थे। जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी भारतीय संत परम्परा के एक दिव्य रत्न है, जिन्होंने अधिक से अधिक लोगों की भलाई उनको शिक्षित करने और उनको सुखी बनाने के लिये आजीवन प्रयास किये। उन्होंने विद्यालय खुलवाने, हिन्दु-मुस्लिम एकता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। श्री विजय वल्लभ सूरि जी जैसे महापुरुष विश्व मंगल के लिए इस वसुन्धरा पर अवतरित होते हैं, अपने समस्त जीवन को लोक कल्याण हेतु समर्पित करते हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अहिंसा, सत्य, संयम और तप से प्रभा पुंज के समान था, ऐसे महापुरुष ने राष्ट्र और समाज को नई वी.सी. जैन 'भाभू' दिशा दी, धर्म के मर्म को समझाया और उस पर चलने की प्रेरणा दी। भूतपूर्व प्रधान श्री आत्मानंद जैन महासभा ____पंचामृत : श्री वल्लभ सूरि जी ने मानव विकास के लिये पाँच सूत्री विजय वल्लभ 168 संस्मरण-संकलन स्मारिका DO Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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