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________________ धर्म 'दान - शील-तप-भावना' कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य जी “धर्म उत्कृष्ट मंगल है, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाला है और संसाररूपी वन को पार करने में रास्ता दिखाने वाला है। धर्म माता की तरह पोषण करता है, पिता की तरह रक्षण करता है, मित्र की तरह प्रसन्न करता है, बन्धु की तरह स्नेह रखता है, गुरु की तरह उजले गुणों में ऊँची जगह चढ़ाता है और स्वामी की तरह बहुत प्रतिष्ठित बनाता है। धर्म सुखों का बड़ा मह है, शत्रुओं के संकट में कवच है, सर्दी से पैदा हुई जड़ता को मिटाने में धूप है और पाप के मर्म को जानने वाला है। धर्म से जीव राजा बनता है, बलदेव होता है, अर्द्धचक्री (वासुदेव) होता है, चक्रवर्ती होता है, देव और इन्द्र होता है, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान (नाम के स्वर्गों) में अहमिन्द्र होता है और धर्म ही से तीर्थंकर भी बनता है। धर्म से क्या-क्या नहीं मिलता है ? (सब कुछ मिलता है। 160 “दुर्गतिप्रपतज्जंतुधारणाद्धर्म उच्यते” (दुर्गति में गिरते हुए जीवों को जो धारण करता है ( बचाता है) उसे धर्म कहते हैं।) वह चार तरह का है। (उनके नाम हैं) दान, शील, तप और भावना । दानधर्म तीन तरह का है। उनके नाम हैं ? 1. ज्ञानदान 2. अभयदान 3. धर्मोपग्रहदान । શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય धर्म नहीं जानने वालों को वाचन या उपदेश आदि का दान देना अथवा ज्ञान पाने के साधनों का दान देना ज्ञानदान कहलाता है। ज्ञानदान से प्राणी अपने हिताहित को जानता है और उससे हित-अहित को समझ, जीवादि तत्वों को पहचान विरति (वैराग्य) प्राप्त करता है। ज्ञानदान से प्राणी उज्ज्वल केवलज्ञान पाता है और सर्वलोक पर कृपा कर लोकाग्र भाग पर आरूढ़ होता है। (मोक्ष में जाता है)। अभयदान का अभिप्राय है मन, वचन और काया से जीव को न मारना, न मरवाना और न मारने वाले का अनुमोदन करना (मारने के काम को भला न बताना) । जीव दो तरह के होते हैं-स्थावर और त्रस। उनके भी दो भेद हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त। पर्याप्तियाँ छः तरह की होती है। उनके नाम हैं 1. आहार 2. शरीर 3. इंद्रिय 4. श्वासोश्वास 5. भाषा 6. मन । एकेंद्रिय जीव के (पहली) चार पर्याप्तियाँ, विकलेंद्रिय जीव (दो इंद्रिय, तीन इंद्रिय और चार इंद्रिय जीव) के पहली पाँच पर्याप्तियाँ और पंचेंद्रिय जीव के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं। एकेंद्रिय स्थावर जीव पाँच तरह के होते हैं-1. पृथ्वी (जमीन) 2. अप (जल) 3. तेज (अग्नि) 4. वायु (हवा) 5. वनस्पति । इनमें से आरंभ के चार सूक्ष्म और बादर ऐसे दो तरह के होते हैं। वनस्पति के प्रत्येक और साधारण दो भेद हैं। साधारण वनस्पति के भी दो भेद हैं। सूक्ष्म और बादर । बस जीवों के चार भेद हैं-1. दो इंद्रिय, 2. तीन इंद्रिय, 3. चार इंद्रिय, 4. पंचेंद्रिय । पंचेंद्रिय जीव दो तरह के होते हैं-1. संज्ञी, 2. असंज्ञी । विजय वल्लभ संस्मरण संकलन स्मारिका
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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