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________________ परम श्रद्धेय, परम वन्दनीय, परम आदरणीय, साधर्मी वत्सलता के परम मसीहा, पंजाब केसरी, अज्ञान तिमिर तरणी, कलिकाल कल्पतरु, ज्योतिर्धर, युगद्रष्टा, युगवीर, दीर्घद्रष्टा ऐसे हमारे चारित्र नायक को कालधर्म प्राप्त हुए आज 50 वर्ष होने जा रहे हैं। फिर भी वल्लभ गुरु की विद्यमानता ही भासित हो रही है। भक्तजन को मौका मिलना चाहिए ऊर्ध्व मुख करके विरल विभूति को, भले वक्ता, गीतकार हो, वल्लभ गुरुवर को न भी देखा हो लेकिन उनके सैंकड़ों जनहित उद्धारक संस्थानों में वल्लभ इसी के अन्तर्गत गुरुवर के द्वारा रचित स्तवन गुरुवर की विधमानता तादस्यता दिखाई दे रही है। उनसे और सज्झाय जो कि परमात्मा की भक्ति में बाल भावों को भी उच्च बना देती है। गीतकार, संगीतकार ओत-प्रोत करने वाले है, बहुत सी सुन्दर, बेजोड़, को कल्पना के पंख अंकुरित हो ही जाते हैं। अपनी कवित्व जैन तत्व से भरे हुए हैं, इनकी स्वर लहरियां शक्ति से हृदय जोड़कर सुन्दर स्वर लहरियां बनने लग . घर-घर में गूंजें। परमात्मा की भक्ति के रूप में जाती हैं। गीतकार आकण्ठ होकर, भाव विभोर होकर गुरु आबालवृद्ध के मुख-कंठ पर आएं इसी भावना को गुण अंकित कर लेता है। बाद में जनसमुदाय में अपनी /अनमोल स्वर लहरियों को मधुर कण्ठ से आलोकित करते सामने रखते हुए 'वल्लभ काव्य सुधा' पुस्तक को हुए उसी वक्त गुरु गुण जन-जन के हृदय में जगा देता है। पुनप्रकाशित करने की समाज को प्रेरणा दी है प्रत्येक व्यक्ति झूमने लग जाता है। उसी वक्त वक्ता और जिसे अखिल भारतीय विजय वल्लभ स्वर्गारोहण श्रोता को यही भासित होता है कि अब वल्लभ गुरु के अर्द्धशताब्दी महोत्सव महासमिति ने सहर्ष चरणों में ही हमारी गुजारिश हो रही है। गुरु वल्लभ स्मित स्वीकार किया है। स्मित मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दे रहे हैं। इस अनुमान से मेरी भावना है कि यह अमूल्य धरोहर अनुभव करते हुए अत्यन्त आनन्द विभोर हो कर भक्त का, प्रत्येक जैन परिवार में होनी चाहिए जिससे हृदय कमल खिल उठता है। बस उसी के सहारे श्रद्धा दीपक वर्तमान और भावी पीढ़ी पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित प्रज्ज्वल्लित करके अपनी जीवन नैया चलाता रहता है। परमात्मा के स्तवनों और सज्झायों को गाते हुए जब भी वल्लभ गुरुवर के कार्यों को देखता, सुनता है, परमात्म भक्ति का लाभ प्राप्त करें इससे पूज्य अपना तन मन एवं धन न्यौछावर करने में अपने को परम सौभाग्यशाली मानता है। गुरुदेव का दिव्याशीष भी हमें प्राप्त होगा और स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष में गुरुदेव के चरणों हमारे पुण्योदय से गुरुवर का स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी वर्ष एक महोत्सव के रूप में मनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ में सच्ची श्रद्धांजली होगी। धर्मलाभ ! है। इसी उपलक्ष्य में मैंने गुरुवर के नाम से विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने की जैन समाज को प्रेरणा दी है विजय रत्नाकर सूरि 142 विजय वल्लभ संस्मरण-संकलन स्मारिका For Private & Personal Use Only 4500 KENEDIRECutional www.jainelibrary.org
SR No.012061
Book TitleVijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadanta Jain, Others
PublisherAkhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size51 MB
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