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________________ धर्मोत्तर टिप्पण के कर्ता मल्लवादी श्री० दलसुखभाई मालवणिया न्यायबिन्दु प्राचार्य धर्मकीर्ति की कृति है। उसकी टीका आचार्य धर्मोत्तर ने लिखी है। अत एव उस टीका का नाम भी धर्मोत्तर हो गया है। इस धर्मोत्तर अर्थात् न्यायबिन्दु टीका के अनेक टिप्पण हैं। उनमें एक प्राचार्य मल्लवादी की कृति है, यह बात पाटन और जैसलमेर के भण्डारों की सूची को देखने से स्पष्ट होती है। प्रोफेसर चिरवासुकी को न्यायबिन्दु टीका के टिप्पण की एक अधूरी प्रति मिली। उसके आधार पर उन्हों ने 'न्यायबिन्दु टीका टिप्पणी' के नाम से एक पुस्तक रशिया की प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थमाला में प्रकाशित की और वह प्राचार्य मल्लवादी कृत है ऐसा भी उन्हों ने उक्त ग्रन्थ में लिखा। किन्तु बाद में उनको मालूम हुआ कि यह कृति मल्लवादी की नहीं है। अत एव उन्होंने अपने भ्रम का निराकरण अपने 'बुद्धिस्ट लोजिक' नामक ग्रन्थ में कर दिया। श्रागमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी की कृपा से मल्लवादीकृत टिप्पण की प्रतिलिपि मेरे पास आ गई है और उसे उक्त मुद्रित टिप्पण के साथ मिलान करने पर यह अत्यन्त स्पष्ट हो गया है कि वे दोनों भिन्न हैं। प्रश्न यह है कि मल्लवादी श्राचार्य कब हुए और कहाँ हुए ? जैन परंपरा में एक मल्लवादी नयचक्र के कर्ता रूप से प्रसिद्ध हैं। उन्हीं मल्लवादी को डा. सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने इस टिप्पण का कर्ता माना है। किन्तु नयचक्र के कर्ता मल्लवादी का परंपरामान्य समय वीर संवत् ८८४ है। उस का मेल धर्मकीर्ति और धर्मोत्तर के समय से न होने के कारण डा० विद्याभूषण ने उक्त संवत् को वीरसंवत् न मानकर उसके शक या विक्रम संवत् होने की संभावना की है। तदनुसार मल्लवादी का समय ई०८२७ या ई० ७६२ माना है।' वस्तुतः देखा जाय तो श्राचार्य मल्लवादी जिन्हों ने नयचक्र लिखा है, इस टिप्पण के कर्ता हैं ही नहीं। डा० विद्याभूषण ने नयचक्र ग्रन्थ देखा नहीं था। अन्यथा वे किसी दूसरे ही मल्लवादी की कल्पना करते। नयचक्र के कर्ता मल्लवादी का समय नहीं बदलते। नयचक्र में प्रसिद्ध दार्शनिक दिङ्नाग का तो उल्लेख है, किन्तु उनके बाद के धर्मकीर्ति आदि किसी दार्शनिक का नाम तो क्या, उनके मत का भी निर्देश नहीं है। वैदिक दार्शनिक कुमारिल का मत भी उसमें निर्दिष्ट नहीं है। भर्तृहरि का उल्लेख है किन्तु ये भर्तृहरि इत्सिंगनिर्दिष्ट भर्तृहरि नहीं, अपि तु दूसरे ही हैं जिनका समय कुमारिल (ई० ५५० अासपास) से भी पहले है। अत एव नयचक्र के कतो मल्लवादी से भिन्न ही मल्लवादी न्यायबिन्दु टीका के टिप्पणकार है ___ डा० अल्टेकर ने एपिग्राफिका इण्डिका में गुजरात के राष्ट्रकूट राजा कर्क सुवर्ण का एक ताम्रपत्र संपादित किया है। उनका अनुमान है कि इस ताम्रपत्र में निर्दिष्ट मल्लवादी न्यायबिन्दुटीका के टिप्पणकार हैं। ताम्रपत्र शक संवत् ७४३ में लिखा गया है और उसमें मूलसंघ सेन आम्नाय में होनेवाले अपराजितसूरि का उल्लेख है। अपराजितसूरि की गुरुपरंपरा उस ताम्रपत्र में दी हुई है। अपराजित के गुरु सुप्रति थे और सुप्रति के गुरु मल्लवादी थे। अपराजित यदि शक संवत् ७४३ अर्थात ई.८२१ में विद्यमान थे तो उनके १. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लॉजिक, पृ. १६५. २. श्लोकवातिक तात्पर्य टीका की प्रस्तावना, पृ. १७. ३. वॉल्यूम २१, पृ. १३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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