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जागृति के देवदूत श्री वल्लभ
श्री रामकुमार जैन, बी. ए., बी. टी., न्यायतीर्थ, स्नातक किस पल जग में तुम आये थे जीवन का ले सन्देश नया। मृतकों को जीवन दे डाला, शास्त्रों का दे उपदेश नया ॥ शुभ उदय बड़ोदा नगरी का, आनन्दगुरु-पद-रज लेकर। वल्लभ संज्ञा सार्थक कर दी, भक्तों को भक्ति दान देकर ।। कुछ जादू था या टोना था या इन्द्रजाल का सपना था। क्यों हमसे नाता तोड़ चले, जब हमको समझा अपना था। तुम फूल सदृश कोमल लेकिन काँटों में मुसकाना सीखा। वैराग्य-सिन्धु का खारा जल, अमृत कर बरसाना सीखा। बीजापुर और बिनौली में, विघ्नों में हरषाना सीखा। गुजरांवाला में बम्ब पड़ा, समता को अपनाना सीखा। कवि पाए, संगीतज्ञ सजे, पर पूरा भेद नहीं पाया। तुम माया रहित ब्रह्मचारी, पर भक्तों पर डाली माया। गुरुकुल, कॉलेज बना डाले, स्वर्गीय गुरु-प्रण पूर्ण किया। संयमी, मदन को मद न रहा, शिव बन उसका मद चूर्ण किया। इतने प्रचंड!, कैसे कवि ने वचनों में सुधा भरी पाई। है सत्य, कठिन भूधर से ही सुरसरी निकलती है आई ।। सकलंक सदैव मयंक रहा, तुम निष्कलंक निष्पंक रहे। श्रीसंघभूप! हे सूरीवर! ध्रुवधीर रहे, निःशंक रहे। युगवीर आत्माराम गुरु, तुम युवक वीर पद के धारी। पंजाबकेसरी, तपधारी, कलिकालकल्पतरु सुखकारी ।। बहुसंख्य विशेषण देकर भी, महिमा न पूर्ण हो पायेगी। जनता सर्वस्व मान करके, मुनिपुंगव ! तव गुण गायेगी। पंजाब सत्य व्रजमण्डल है, तुम श्याम हमारे मनहारी। तुम बिछुड़ गए पर मन से हैं सब भक्त तुम्हीं पर बलिहारी॥ तुम मेघ पुष्करावर्त बने, भू पर बरसे और चले गये। पर एक समुद्र' दिया हमको जिसके हैं दृश्य अपार नये ॥ उपकार आपका हे वल्लभ! क्या जगती कभी भुलायेगी? जब याद आपकी आयेगी, वह हमको बहुत रुलायेगी। हे भक्तवृन्द! सब एक साथ मिल "श्री वल्लभ जय जयति" कहो।
हे जागृति के नवदेवदूत! तुम इतिहासों में अमर रहो॥ १ वर्तमान प्राचार्य श्री श्री १००८ श्री विजयसमुद्रसूरि-संपादक
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