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________________ निवेदन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । पूज्य उमास्वाति महाराजे मोक्षमार्गनी आराधना माटे मुख्य त्रण वस्तुओ उपर भार मूक्यो छे : सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्र्य मानवदेह पामी आपणे जो कांई प्राप्त करवानुं होय तो ते आज छे. जीवनने ऊर्ध्वगामी बनावी मोक्षप्राप्तिनो ए ज एक राजमार्ग छे. पण आवा आ राजमार्ग पर कोई कोई वखत भयंकर अंधारां छवाई जाय छे त्यारे पोतानी ज्ञानरुपी ज्योतथी तेने अजवाळवा कोई महाप्रतापी धर्मपुरुषनी जरुर ऊभी थाय छे. आवो एक धर्मपुरुष पोतानी जीवनसुवास प्रसरावी आपणी वच्चेथी हमणां ज विदाय थयो. तेनुं नाम हतुं आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरिजी ए साचा अर्थमां धर्मपुरुष हता. समाजमां प्रसरेला अज्ञानरुपी अंधकारने दूर करवा माटे तेमणे जे कांई क ते अद्भुत हतुं, बीजा कोईथी भाग्ये ज बनी शके एवं हतुं. समाज परनुं तेमनुं आ ॠण कदी न विसरी शकाय तेवुं छे. सामूहिक अने व्यक्तिगत रीते एमणे करेला उपकारो कदी न भूली शकाय एवा छे. आपणी संस्कृतिना संरक्षको छे अरिहंतो, सिद्धो, आचार्यो, उपाध्यायो अने साधुओ. एमणे आपणी उज्ज्वळ प्रणालिकाने वधु उज्ज्वळ बनावी छे - आपणा सांस्कृतिक विकास अने चिंतनमां महत्त्वनो फाळो आयो छे. आचार्य श्रीविजययल्लभसूरिजी आवा सिद्धो-संतोमांना एक हता. अर्वाचीन समाजना सांस्कृतिक विकास माटे तेणे अथक प्रयत्नो कर्या अने तेओ सिद्धिने वर्या. तेमना आ कार्यनुं मूल्यांकन कोई रीते थई शके तेम नथी, छतां एमनाए महान कार्यने एक नानीशी अंजलि अर्पवाना नम्र प्रयास रुपे आ ग्रंथ प्रगट करवानुं अमे साहस कयुं छे. समाजना उत्कर्ष माटे आचार्यश्रीए शा शा प्रयत्नो कर्या, तेमनो आ उपकार केटलो मोटो हतो, एनो यत्किंचित ख्याल आ ग्रन्थ आपरो अवुं अमारुं मानवुं छे. आ ग्रन्थने आचार्यश्रीना नाम अने कामने गौरव अर्पे एवो बनाववाना सजाग प्रयत्नो संपादको अने प्रकाशकोए कर्या छे. आ प्रयास केटले अंशे सफळ थयो छे ए तो समाज अने वाचकवर्गे ज कहेवुं रघुं. कोई पण महापुरुषना जीवननी समीक्षा करवानुं काम सहेलं नथी. आचार्यश्री माटे पण आम ज बन्युं छे. एमां वळी ए महान आत्माना अनेक उपकारो आपणा समाज पर छे एटले ए समीक्षानुं काम वधु मुश्केल बने छे. आपण - एमणे आपणा पर करेला अनेक उपकारो - अनुग्रहोने लीधे-एमना गुणोनुं ज दर्शन थाय ए स्वाभाविक छे. परिणामे आ ग्रंथमां एमनां गुणगान ज आपनी नजरे पडे तो ते क्षम्य जगणारी. आचार्यश्रीने जे प्रवृत्तिओ अतिप्रिय हती एमां श्री महावीर जैन विद्यालय मुख्य छे. श्री महावीर जैन विद्यालयमा प्रेरणादाता, प्रोत्साहक अने प्रणेता आचार्यश्री हता. आ संस्थानी अनेक स्मृतिओ आचार्यश्री साथै संकळायेली छे, परिणामे आ ग्रंथ प्रगट करवानुं ठर्यु अने आजे अनेकोना आशीर्वाद साथे ए बहार पडे छे. आचार्यश्रीए जीवनना छेल्ला केटलाक महिना आ संस्थामां पसार कर्या हता अने आ संस्थाने तथा तेना कार्यवाहकोने एमनी सेवानो लाभ मळ्यो हतो. तेमांथी सांपडेली प्रेरणानुं एक स्वरुप आ ग्रंथमां छे. आचार्यश्री समत्र पण कुं जीवनदर्शन कराववानो नम्र प्रयास आ ग्रन्थमां थयो छे, अने ते साथे जैनसंस्कृति अने संशोधनने लगतुं सारं एवं साहित्य पण रजू करवामां आव्यु छे. आ ग्रन्थ ए रीते आचार्यश्रीना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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