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________________ जीवनवत स्थित व्यायामशाला से सैकड़ों सज्जन लाभ उठाते। वहां व्यायाम का पैरेलल वार, रिंग डबल आदि सारा सामान एक कुशल व्यायाम प्रशिक्षक के सान्निध्य में होता था तथा उसमें श्री नेमचन्द मुणोत आदि नवयुवक बराबर व्यायाम करते। नवयुवक समिति के संरक्षण में वार्षिक आयोजन मैदान में भी होता। जुजुत्सु, लाठी, छुरा, दौड़, म्युजिकल चेयर आदि के प्रदर्शन में श्री बांठियाजी अग्रणी रहते। उसमें छोगमलजी चोपड़ा भी शामिल होते थे और नवयुवकों का संगठन वहीं से प्रारम्भ हुआ। श्री मोहनलालजी, श्रीचन्दजी रामपुरिया और उत्साही नवयुवकवर्ग श्री छोगमलजी के शिष्य रहे और उनके तत्वावधान में उपरोक्त संस्थाओं में सक्रिय भाग लेते। । स्व. श्रीमोहनलालजी बांठिया रिटायर्ड लाइफ बिता रहे थे। उनको विश्वस्त सूत्र से पता चला कि उनकी फर्म में उनके मुनीम गुमास्ते व उनके परिवार के ही कुछ सदस्य इनका व्यवसाय संभालने में बहुत लापरवाही कर रहे हैं। पहले भी इस आशय की भनक उनके कानों में पड़ी थी, किन्तु इस अवस्था में वे कुछ ठोस कदम उठाने में समर्थ नहीं हुए, किन्तु इस स्थिति की जानकारी के बाद अन्तिम दिनों में भी वे स्वयं व्यापार संभालने की चेष्टा करते रहे। साथ ही जैन कोषों के नवनिर्माण में लगे रहे और चातुर्मास में आचार्यश्री तुलसी की सेवा में भाग लेकर अपना समय बिताते। उनकी लीज के मकान की एक गोदाम उन्होंने एक व्यापारी को सलामी लेकर बड़ी रकम प्राप्त की और उसी वक्त उस रकम को जहां देना जरूरी समझा विना हिचकिचाहट के तुरन्त वह प्राप्त रकम ईमानदारीपूर्वक उनको भिजवा दी। मस्तिष्क पर व्यवसाय का अधिक बोझ पड़ने से वे बीमार हो गए व अस्पताल में भर्ती हुए और अन्तिम समय में बेहोशी की अवस्था में रहे। परन्तु सौभाग्य से अन्तिम बिदाई के कुछ मिनट पहले उनको होश आया और आंख खोली। उस वक्त उनको होश था और आध्यात्मिक भावनाओं में कुछ क्षण बाद ही परलोकवासी होगए। इसी जागरूकता के कारण उच्चगति का वरण किया जैसे एक आदमी भगवान बुद्ध के पास गया और यह प्रश्न किया कि भगवान आदमी को कर्म बन्धन से बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया कि कल सोचकर इसका उत्तर दिया जायेगा। उसने बड़ी नम्रता से अर्ज किया भगवान कल किसने देखा है। मुझे तो अभी इसका उत्तर दीजिये। कल आप न रहें या मैं न रहूं । भगवान बुद्ध को बोध हुआ कि यह आदमी ठीक कह रहा है तो उन्होने कहा हमेशा जागरूक रहना ही उत्तम मार्ग है। इसी का उदाहरण उपरोक्त बात से मिल जाता है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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