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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ जैन दर्शन समिति ने पनीवगर सूत्र के ३६ का प्रकाशन का काम हाथ में ले रक्खा है क्योंकि हजार विषय का काम नहीं लिया जा सकता। परन्तु विदुषी हीराकुमारी व प्रो. सत्यरंजन बनर्जी के मतानुसार जैन दर्शन की गम्भीर जानकारी इन विषयों का अध्ययन करने से मिल सकती है। इसलिए इस दिशा में अभी लेश्या कोष, क्रिया कोष, योग कोष दो खण्ड और पुदगल ध्यान कोष का काम चालू है। इसके सिवाय भगवान वर्धमान के जीवन के सम्बन्ध में तीन खण्ड अलग से प्रकाशित हो चुके हैं। उसमें वर्धमान के जीवनकाल में त्याग तपस्या का वर्णन, कैवल्य प्राप्ति के बाद का चार तीर्थ के प्रथम खण्ड में विद्वान श्रीचन्द चोरड़िया ने प्रकाशित किया है। जिस किसी दशमलव प्रणाली के आधार पर इतने सारे आगम कोष का निर्माण किया उसकी जानकारी उस पुस्तक में उपलब्ध है। - इस सदी में उल्लेखनीय ३२ सूत्रों का हिन्दी अनुवाद गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञजी की देखरेख में हो चुका है। वह प्रकाशित हो गया है। दूसरे मोहनलालजी बांठिया का विषयानुक्रमिक बत्तीस सूत्रों की पाण्डुलिपि भी बहुत महत्व की कृति है। उसमें लेश्या कोष, क्रिया कोष, योग कोष आदि प्रकाशित हो चुके हैं। पुदगल कोष व ध्यान कोष उनके जीवनकाल में साधु सन्तों श्रावकों का वर्णन व वर्धमान के २ खण्डों का सविस्तार वर्णन यह सब सूत्रों के आधार पर प्राकृत भाषा में हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हुए हैं। जैन दर्शन समिति द्वारा विद्वान लेखक श्री श्रीचन्द चोरड़िया की नई कृति “मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास" भी प्रकाशित हो चुकी है। आगम साहित्य के निर्माण में इसकी विषयानुक्रमिक विषयों में बड़ा सहयोग मिलेगा, ऐसी धारणा है। ___ श्री मोहनलालजी बांठिया ने कुछ नियम बना रखे थे। उसका पालन अनिवार्य रूप से होता था। वे त्यागी वैरागी पुरूष थे। एक बार हार्ट मरीज होने के बाद संभल गए और जैन वांग्मय के कोष संग्रह में बीस वर्ष का समय बिताया। श्रीचन्द चोरड़िया का सहयोग मिला, काम में गति आई। लेश्या कोष अपने व्यय से प्रकाशित किया और उसकी प्रतियां देश-विदेश के विद्वानों को निःशुल्क भेजीं। विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। अपने घर में संवत्सरी के आठ दिनों में जमीकन्द, हरी सब्जी व फल उपयोग में नहीं लेते थे। सूखे साग ही उपयोग मे लाते थे। श्री मोहनलालजी बांठिया युवावस्था से ही तेरापंथी महासभा ओसवाल नवयुवक समिति व जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्यालय से सम्बन्ध रखते थे। स्टाण्ड रोड Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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