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________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ उनके अनुसार केवल बुद्धि ही वह अमूल्य वस्तु है जिसके आगे विश्व के सभी बैभव व सुख-सुविधाएं नगण्य हैं। उनकी आत्मा सर्वव्यापी व अपरिवर्तनीय आत्म-तत्त्व का बौद्धिक चिन्तन करती हुई सदा शांत व निर्विकार बनने का प्रयास करती रही और मानवीय दुःखों से छुटकारा पाकर अन्त में अपनी ओर मुड़ कर स्वयं अवस्थित हो गयी। उनके सारे जीवन या चर्या का यही सार था। जिसके वे मूर्तिमान आदर्श रहे। निष्कर्ष इस प्रकार भगवान महावीर के समकालीन महापुरूषों का संक्षिप्त जीवन-दर्शन प्रस्तुत करने का मैने प्रयास किया है। लगता है कि ईसा से ५०० वर्ष पूर्व से ४०० वर्ष पूर्व के समय मे विश्व में मानव-मस्तिष्क एक नवजागरण के प्रति आकृष्ट हो रहा था व उसके विचारों में प्रोढ़ता व प्रांजलता का आभास हो रहा था जिसके लिए भारत, चीन, ईरान, यूनान के उपर्युक्त सभी महापुरूष अपनी सारी शक्ति जगाकर एक वातावरण तैयार कर रहे थे। यह निश्चित रूप से नही कहा जा सकता कि इन महापुरूषो ने एक-दूसरे को प्रभावित किया अथवा नहीं, क्योंकि उस समय के संपर्क साधनो के अभाव में ऐसा होना संभव कम लगता है किन्तु हजारों वर्षों से केवल श्रद्धा के बल पर टिका जन-मानस सभी स्थानों पर उद्वेलित होकर चिंतन का नया द्वार पाने को अवश्य उत्सुक हो रहा था और उन सभी महापुरूषों ने जन जागरण की उस बेला में अपनी पवित्र साधना के द्वारा जनता को सही मार्ग का निर्देशन कर मानवता के जो अविचल मानदंड स्थापित किए वे आज भी उतने ही चिरसत्य हैं और आने वाले युगों तक इसी प्रकार शाश्वत व चिरंतन रहेगे। वह उन महापुरूषो की अलौकिक आत्मशक्ति व जागृत एवं सचेत मस्तिष्क की ही उपज है जो इतना सव कुछ देकर मानवता की त्राण वन सकी। आवश्यकता इस बात की है कि इन महापुरुषों के आदर्शों व विचारो का तुलनात्मक अध्ययन एवं समीक्षा की जाय तथा उन्हें अधिकाधिक उपयोगी व कल्पाणकारी बनाने का प्रयास किया जाये। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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